Thursday 30 June 2011

मासूम सा चेहरा है शम्मा

 
क्यूँ रिंद भटकते फिरते हैं , ढूंढा करते हैं पैमाने
उसकी जो निगाहें उठतीं हैं , खुलते हैं हज़ारों मयख़ाने

तस्वीर बसी है आँखों में क्यूँ ढूंढ़ते हो तुम आईना
रखते हैं बड़ी हिफाज़त से एक तेरी अमानत दीवाने

खिलते हैं न जाने कितने गुल ,जब उसके होंठ थिरकते है
मासूम सा चेहरा है शम्मा ,या रब समझा या परवाने

अंदाज़े तरन्नुम सीखा है सागर की लहरों ने तुमसे
वो तेरे तबस्सुम की शोख़ी बादल तरसे बिजली जाने

 

No comments:

Post a Comment