Sunday 14 September 2014

नाम तेरा कब कम हो जाए

पास है जो भी कब खो जाए
जन्नत कब दोज़ख हो जाए
खुशियाँ सब ओझल हो जाएँ
दर्द भरा आलम हो जाए
खुश्क हवाओं के मौसम में
आँख तेरी कब नम हो जाए
खुद जी और जीने दे सबको
किसे खबर है अगले पल की
ज़िंदा लोगों की सूची में
नाम तेरा कब कम हो जाए

उत्तर प्रदेश जिला अलीगढ

उत्तर प्रदेश जिला अलीगढ से चौदह मील दूर है एक क़स्बा खैर । वहीं जन्मा था मैं सन १९४९ मेँ  । निम्न मध्य वर्ग से कुछ और कमज़ोर परिवार । जब होश  संभाला तब उस समय हम चार भाई और एक बहन मिला कर पांच थे । मैं  सबसे छोटा था । जन्म से पहले तीन बड़ी बहनें जीवित नहीं रह सकीं । कुल मिला कर मैं  अपनी माँ की आठवीं संतान था । पिता एक इंटर कॉलेज में संस्कृत के अध्यापक थे । आर्थिक हालात इतने कमज़ोर कि मेरे जन्म के समय प्रसव का पूरा कार्य मेरी बड़ी बहन ने अपने हाथों से कराया था । प्रारम्भ में कोई पारम्परिक शिक्षा नहीं मिली । परन्तु सौभाग्यवश गणित के एक प्रश्न से प्रभावित हो कर , पिता जिस स्कूल में पढ़ाते थे उसके प्रिंसिपल श्री किशोरी लाल जी ने मेरा दाखिला सीधे पांचवीं कक्षा में कर दिया । उम्र कोई छह वर्ष कुछ माह रही होगी । गणित के अलावा विषय और भी थे जिन्हे समझनै में प्रारम्भ में बहुत कठिनाई हुई । आगे की कुछ कक्षाओं में गाडी लखड़ाते हुए आगे बड़ी ,पर नवी कक्षा में आते आते बुद्धि विकसित हुई और मेरा अपनी कक्षा में तीसरा स्थान आया । अगले वर्ष यू पी बोर्ड से हाई स्कूल की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण तो हुआ परन्तु बोर्ड में रैंक अच्छी नहीं थी फिर भी १६ रुपये प्रति माह की छात्रवृति मिलने लगी ।