Friday 28 August 2015

तुम बिना बात क्यूँ नहीं मिलते

सिर्फ मिलते हो किसी मक़सद से
तुम बिना बात क्यूँ नहीं मिलते

इतना उजड़ा है अब चमन कि यहां
मौसमी फूल भी नहीं खिलते

तसल्लियों का खज़ाना तो सभी रखते हैं
ज़ख्म दिखते हुए नहीं सिलते

वादा उसने किया था कल का हमें
आज भी रह गया मिलते मिलते

Wednesday 26 August 2015

तूने मोहलत न दी संभलने की

हमको बर्बाद यूँ ही होना था
अपनी फितरत न थी बदलने की

न गिरते इस तरह हम तेरे दर पे ऐ साक़ी
तूने मोहलत न दी संभलने की

न कोई ज़िक्रे सुबह और न इंतज़ामे शाम
बात उठ्ठी है रात ढलने की

रिन्द गिरने लगे हैं अब तेरे मयखाने में
सोचते हम भी हैं निकलने की

Saturday 22 August 2015

यहाँ दैरो हरम लड़ते हैं

ग़ुलों के साथ कांटे हैं हवाएँ गर्म बहती हैं
न जाने फिर भी क्यूँ हमसे चमन छोड़ा नहीं जाता

यहाँ दैरो हरम लड़ते हैं अपनी रूह घुटती है
मगर हम हैं कि हमसे ये वतन छोड़ा नहीं जाता

ऐ याराँ कितने हैं दिलकश नज़ारे और दुनियां में
कहाँ जाएँ कि अब तेरा सहन छोड़ा नहीं जाता

ज़माना रोज़ कहता है जवाँ अब हो गया है वो
मगर उस बेख़बर से बालपन छोड़ा नहीं जाता