Chithhi
Wednesday 22 July 2015
पूछ लेना तेरा मज़हब क्या है
जब भी जाए इस वतन की हवा साँसों में
पूछ लेना तेरा मज़हब क्या है
गर जो काफ़िर वो निकल जाए कहीं
हो जो हिम्मत उसे लौटा देना
Thursday 16 July 2015
डर लगता है
बारहा यूँ न आ तसव्वुर में
प्यार हो जाएगा डर लगता है
सुबह की धूप जैसा चेहरा तेरा
ये सच नहीं है मगर लगता है
इश्क़ के ज़ख्म तो भर जाते है
दर्द क्यूँ सारी उमर लगता है
लोग रोते हैं यहां शामो सहर
फिर भी खामोश शहर लगता है
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