Friday 30 March 2012

तेरे आगोश में



तेरे आगोश में बरसों जिए हैं काली रात
बस एक चराग़ से तू इतनी परेशां क्यूँ है

मैं तो बेताब हुआ बैठा हूँ मरने के लिए
तेरी महफ़िल में मेरे क़त्ल का चर्चा क्यूँ है

गुज़ारी  सारी  उमर सिसक सिसक
ज़िंदगी देने का मुझ पे तेरा अहसाँ क्यूँ है

लोग मर मर के दिए जाते हैं इसको तोहफ़े
ये क़ब्रगाह  फिर भी  इतना बयाबाँ क्यूँ है

Thursday 29 March 2012

सैय्यादों की सूरत

निकल के क़ैद से  बैठा है मायूस परिंदा
उड़ने का सलीका  उसे अब याद नहीं है

तू खुश है देख कर के  दरवाज़े की रौनक
अंदर के अंधेरों का  तुझे अंदाज़ नहीं है

सरहद से आ रहा है गोलियों का शोर
तेरे किसी हमदर्द की आवाज़ नहीं है
आई है नये रंग  में  सैय्यादों की सूरत
जो कल थी तेरे सामने वो आज नहीं है

Tuesday 27 March 2012

तस्वीर इस ज़माने की

मिन्नतें की थीं न आना कभी तू मेरे घर
बहुत बेदर्द है ये दर्द चला ही आया

कोशिशें करता रहा उससे दूर जाने की
मेरे बदन से लिपटता रहा मेरा साया
मांगती है हिसाब उम्र वक्ते रुखसत पे
बन के मेहमान बता  तूने यहाँ क्या पाया 

जिसे बदलनी थी तस्वीर इस ज़माने की 
अपनी ख़ुद की ही तस्वीर को  मिटा  पाया

Sunday 18 March 2012

बेबस है सच कुछ इस तरह


काली काली बदलियों से झांकता सूरज हो जैसे
इस जहां में हो गया बेबस है सच कुछ इस तरह

अश्कों  से भीगी है चूनर  उनको अब आराम है  
काश मेरा मन  भिगो देता मुझे भी  उस तरह

जिन दरख्तों की क़तारों पर लिखे थे हमने नाम
कट गए वो एक घनी बस्ती बनी है उस जगह

जिस के आने से मिले माज़ूर  को कुछ रोटियां  
आओ मिलकर  ढूंढ  के    लायें कोई ऐसी सुबह 

Saturday 17 March 2012

तो जीना मुख़्तसर क्यूँ हो


तेरे इन आंसुओं का मुझपे अब इतना असर क्यूँ हो
छुड़ाया हाथ तुमने था तो तोहमत मेरे सर क्यूँ हो

मेरे दुनियां में रहने से क़यामत तो नहीं होगी
अगर जाना मेरा तय है तो जीना मुख़्तसर क्यूँ हो
मेरे आने की कोशिश तू , मेरे जीने की ख्वाहिश तू
मेरे जाने का बाइस तू , तो फिर ऐसा  भी डर क्यूँ हो

कहीं ज़ाहिर कहीं पिनहाँ   गुनाहों की किताबें  हैं
अगर बिजली को  गिरना है , तो वो मेरा ही घर क्यूँ  हो

किसी से भी न कहना तुम मेरा किस्सा ऐ बरबादी
वो अंजामे मोहब्बत आज रुसवा दर ब दर क्यूँ हो



Friday 16 March 2012

रूप कैसे तबाह होता है


रूप कैसे तबाह होता है
वक़्त का आइना दिखाता है

खुशी आती है दस्तक देकर
दर्द चुपके से चला आता है
मैं पुकारता हूँ बीते लमहों को
कौन जा कर के लौट पाता है

उसके सीने में झांक कर देखो
वो जो महफ़िल में मुस्कराता है

जिसकी शोख़ी से है चमन गुलज़ार 
पल में वो फूल बिखर जाता है

बन के मिटती हैं रोज़  तस्वीरें 
दाग़े दामन कहाँ मिट पाता  है

सुना इंसान यहाँ रहते हैं

संग दिल राह दिखाने वाले
कुछ नहीं करते मगर कहते हैं

दरिया दिल राह पे चलने वाले
सिर्फ सुनते हैं और सहते हैं

कितने मासूम हैं ये भूखे लोग
हवा के साथ  साथ बहते हैं

मुझे जितने मिले पत्थर ही मिले
सुना इंसान यहाँ रहते हैं
 

Thursday 15 March 2012

ये चंचल हवा भी



बड़ी है शोख़ ये चंचल हवा भी
कि जब देखो नए चेहरे दिखाती है

अगर रुक जाए पिघलता है बदन
जो चलती है तेरा आँचल उड़ाती है

दिल के कांटे तो निकल जाते हैं
पर चुभन उम्र भर सताती है

चढ़ रहा है तेरे शबाब का सूरज
और मेरी शाम ढली जाती है


Wednesday 14 March 2012

ये मौसमे बरसात

ये ढलती रात ,ये तनहाई,तसव्वुर तेरा
उसपे ये मौसमे बरसात है बेदर्द बड़ा

तोहमत न लगा बादाकश नहीं हूँ मैं
पपीहे ने कहा 'पी पी ', मुझे पीना पड़ा

कहाँ से लाऊं उजाला मैं आज अपने लिए
मेरे साए का अँधेरा मेरे पीछे है खड़ा
सहारा न दे बदन को  मगर हाथ तो दे
ये इम्तिहान बड़ा है और ये वक़्त कड़ा
 

Tuesday 13 March 2012

आके ज़रा रक्स तो कर


अभी ज़ेहन में बचे हैं कुछ यादों के फूल
सींचते हैं अश्कों से जिनको शामो सहर

उसके अंदाज़े तरन्नुम को बसा लूं दिल में
अभी चलता हूँ तेरे साथ मेरी मौत ठहर
मैं  हवा में तेरी   पायल  की  खनक  सुनता हूँ
मेरी आँखों में कभी आके ज़रा रक्स  तो कर

जाने कब तक है मेरे साथ ये साँसों का सिलसिला
कुछ  बता  कर  तो  हादिसे  नहीं  होते  अक्सर 

Sunday 11 March 2012

किससे अब कहा जाए

मुख्तलिफ़ है ऐ रहबर तेरा अंदाज़े क़त्ल
मौत तो मौत है वो जिस तरह भी आ जाए

जिसको देखो वो ही खंजर लिए है हाथों में
दवा दो ज़ख्म न दो किससे अब कहा जाए
कौन है वाली ओ वारिस यहाँ मजलूमों का
तुम्ही बताओ किससे वास्ता रखा जाए

जो भी आया नया हाक़िम उसी ने मारा है 
कितने दिन और अब ये सितम  सहा जाए

Saturday 10 March 2012

जलन बढती जाती है


उसी गुलाब में कांटे भी छिपे बैठे हैं
जिस की खुशबू तुझे मदहोश किये जाती है

लोग जो हँसते हुए दिखते हैं इस बस्ती में
उनकी रूहों से सिसकने की सदा आती है
...
हम भी देखेंगे इस बरस ये सावन की हवा
लूटती है हमें या मोतियाँ बरसाती है

ढूंढ के लाओ कोई फिर से नया चारागर
मर्ज़ जाता नहीं है बस दवा बहलाती है

क्या कहें हम तेरी आँखों की शराब
जितना पीते हैं उतनी प्यास बढ़ती जाती है

सभी ने रस्म निभायी है

चढ़ता सैलाब  जिन्हें  दूर  किया करता है
क़श्तियाँ जोड़ती आयी  हैं उन किनारों  को

सभी ने   रस्म निभायी है मुरझाने की    
गुलों का  क़र्ज़ चुकाना है इन  बहारों को 

ढलता सूरज हूँ प्यार न कर मुझसे ऐ शाम 
कोई आवाज़ नहीं देता टूटे तारों को

रोते  हैं सर छिपा कर के  अपने दामन में
कोई कंधा नहीं देता है ग़म के मारों को

Wednesday 7 March 2012

मिली थी चांदनी

ढल रही है शाम थक कर बुझ गया सारा शहर
अब नहीं लगता है जैसे अब भी कुछ होने को है
करते हैं महफ़िल तेरी तेरे हवाले ऐ ज़मीं
आख़िरी ये मरहले और ज़िंदगी सोने को है
 
रंग जितने पत्तियों में भर सकी वो भर चुकी
शाख़ की किस्मत में बाकी क्या सिवा रोने को है

चाँद को सौंपेंगे जो उससे मिली थी चांदनी
साथ लाये थे क्या हम , इस वक़्त जो खोने को है

यहाँ भूखे हैं लोग

झूठे वादे न कर रहबर यहाँ भूखे हैं लोग
ज़िंदगी एक  हक़ीक़त है कोई ख्वाब नहीं

कोई बहाना नया फिर से ढूँढ मत साक़ी
कभी पियाला नहीं तो कभी शराब नहीं 

ये ढलती उम्र है इतने सवाल करती है
और मेरे पास इनका कोई  जवाब नहीं

 जीना होगा तुझे ऐ दोस्त  इन्ही  कांटो में
 चमन में बाकी अब एक भी  गुलाब नहीं



 

Tuesday 6 March 2012

पत्थर सनम निकला

मुतमइन था तेरा ग़म है कि वो भी मेरा ग़म निकला
समझते थे जिसे हम आशना पत्थर सनम निकला

किसी प्यासे ने साहिल पर कभी एक बूँद माँगी थी
वो राही अब भी प्यासा है समंदर बेरहम निकला
मैं गाफ़िल था मुझे ही रंज   है    तेरे    बिछड़ने का
जो छू कर हाथ से देखा तेरा आँचल भी नम निकला

जो दिल में रखता है   बिजली  वो बादल आतिशी  होगा
जब  पानी बन के बरसा  तो मेरा ये भी वहम निकला

मेरी तनहाइयां तनहा न करो

इतनी इज्ज़त से मेरा नाम न लो
मेरी रुसवाइयां रुसवा न करो

दूर  रह  कर ही  मुझे जीने दो 
मेरी तनहाइयां  तनहा   न करो

मुझे नफ़रत ही रास आती है
इस तरह प्यार से देखा न करो


मिला है ग़म  तो क़लम चलती है
सितमगरी में कुछ कमी न करो

 

Monday 5 March 2012

चेहरा हर बार वही आता है

जो भी आया यहाँ तड़पता रहा
कौन इसमें सुकून पाता है

प्यार साग़र भी है और आग भी है
जो नहीं डूबता , जल जाता है
उफ़क़ तक ही दिखी हद जिसकी
रास्ता दूर तलक जाता है
सिक्का  दोनों तरफ़ से एक सा है 
चेहरा  हर बार 
वही आता है
 
 

Sunday 4 March 2012

नफ़रत की बयार

चाहतों का दौर तो गुम हो गया
अब यहाँ बहती है नफ़रत की बयार

उनसे उम्मीद क्या करें जिनको
नहीं मालूम क्या होता है प्यार

पहले रहते थे जहाँ कुछ आशना
उन घरों में बन गयीं ऊंची दीवार

जी चुके हिस्से की अपनी ज़िंदगी
कौन अब देगा हमें साँसें उधार

Saturday 3 March 2012

मेरे पाँव में कांटे बन कर


संभल के कितना चलूँ ऐ ज़िंदगी तू बता
लोग चुभते है मेरे पाँव में कांटे बन कर

ज़रा सी बात हवाओं से अगर कहता हूँ
बढ़ के तूफ़ान उमड़ते हैं फ़साने बन कर

जिनको ये राहे मोहब्बत  लगती थी सहल
अपने घर लौट गए कितने दिवाने बन कर
एक रात जी  न सके परिंदे  चमनज़ारों  में   
मर गये शाखों पे   तीरों के निशाने बन कर 
हमें था नाज़ कभी जिनकी आशनाई पर
पेश आये क्यूँ वो  हमसे बेगाने बन कर
 

Friday 2 March 2012

पत्थर तो न था

वो गुज़रना तुम्हारी गलियों से
था इत्तेफ़ाक, जानकर तो न था

इतना बदनाम किया है तुमने
मैं भी इंसान था पत्थर तो न था

ये शाखें आँधियों ने तोडी है
गुनाहगार एक शजर तो न था

मैं लुटा हूँ मुझे ऐसा एहसास

तेरे मिलने से पेश्तर तो न था


 
 

Thursday 1 March 2012

वो गुज़रा ज़माना

अगले बरस ऐ सावन जब लौट के आना
एक दिन के लिए लाना वो गुज़रा ज़माना

बदली सी घिरी आँख में और भीगी निगाहें
तेरा यूँ ही मचलना और  मेरा मनाना

कितनी ही कश्तियों को साहिल नहीं मिले
ग़र्दिश भी ढूंढ लेती है कोई झूठा बहाना

जागा हूँ सारी रात अब है आख़िरी पहर
लग जाए मेरी आँख मुझे तुम न जगाना