Wednesday 31 August 2011
Monday 29 August 2011
एक मजबूर मेमना
तुम ठोंकते रहे मेरे ताबूत में कीलें
मैंने दिखाया आइना तो हो गया गुनाह
कितनी दलीलें देगा एक मजबूर मेमना
उसको तो एक दिन होना ही है तबाह
ये भेड़ियों की नस्ल पनपती ही रहेगी
उनके नुकीले दांत हैं इस बात के गवाह
ये जंगे सियासत के खूंख्वार खिलाड़ी
फिर से करेंगे वार अपनी बदल के राह
Sunday 28 August 2011
दिल में मेरे अक़ीदत है
ये सच है मैं मरता हूँ अपने मज़हब पर
राज़ की बात है मज़हब मेरा मोहब्बत है
तेरा जमाल है या मेरी निगाहों का फ़रेब
जिधर भी देखूं नज़र आये तेरी सूरत है
ख़ुद ब ख़ुद झुक ही जाती है गर्दन मेरी
तेरा चेहरा जैसे कोई मज़ारे उलफ़त है
है एक फ़र्क़ मुझमें और अहले दुनियां में
वो देखते हैं चेहरा , दिल में मेरे अक़ीदत है
चलो लौट चलें
हम बड़ी दूर चले आये थे अपने घर से
बुला रहा है सारा देश चलो लौट चलें
तेरे ही दूध से बना मेरी रग़ों में खूँ
उतारना है तेरा क़र्ज़ चलो लौट चलें
है अमानत ये शहीदों की मेरी आज़ादी
इसे बचाना मेरा फ़र्ज़ चलो लौट चलें
मिली थी तेरे ही हाथों से ज़िंदगी हमको
लुटा दें तुझ पे क्या है हर्ज़ चलो लौट चलें
Friday 26 August 2011
एक झुलसा हुआ बदन
वो जां ब लब पड़ा है दीवाने आम में
है भूख से बेहाल एक झुलसा हुआ बदन
दीवाने ख़ास में अभी चलती है ये बहस
किसको मिलेगा बाद में आधा जला क़फ़न
क्या है ये वही सुबह जिसे ढूंढते थे हम
राहों से पूछता है हर एक राहजन
जन्नत में रो रही हैं शहीदों की रूहें
है तुझपे पशेमा ये आज़ादी ए वतन
तेरा दिल ग़ुलाम हैं
मैं तो शहर की फ़िक्र में अक्सर नहीं सोता
सुनते है हुक्मराँ की भी नींदें हराम हैं
सुन ग़ौर से क्या कहती है बहती हुई हवा
कहने को तू आज़ाद है तेरा दिल ग़ुलाम हैं
उसने कहा उसे मेरी सेहत का है ख़याल
सच पूछिये तो मौत का सब इंतज़ाम है
माथे की सलवटें नहीं हैं तर्जुमा ए उम्र
वो ही जवां है हसरतें जिसकी जवान हैं
Wednesday 24 August 2011
सच बचाने के लिए
थे इस फिराक़ में गंगा में हाथ धो लेंगे
आज चढ़ते हुए पानी ने धो दिया चेहरा
चले गए सभी अपनी ही अलग राहों में
सच बचाने के लिए एक भी नहीं ठहरा
इतना आसां नहीं है तैर कर जाना
है समंदर तेरे अंदाज़ से कहीं गहरा
किसे है फ़िक्र फ़क़ीरों के जीने मरने की
सब चाहते हैं उन ही के सर बंधे सेहरा
Monday 22 August 2011
संगे देहलीज़ हूँ
मैं कोई मोम के मानिंद नहीं अहले जहाँ
ज़रा सी आग से पिघलूँगा और बह जाऊँगा
जिगर के ख़ून से लिखूंगा तवारीखे वतन
संगे देहलीज़ हूँ दरवाज़े पे रह जाऊँगा
मुझे मिली है तेरे अश्कों से जो इतनी ताक़त
हज़ार ज़ुल्म ज़माने के मैं सह जाऊँगा
हरदम गूंजेगी तेरे ज़ेहन में मेरी आवाज़
प्यार का राज़ तेरे कान में कह जाऊँगा
सीने में सजा लो तुम
इन गूंजते नग़मों को सीने में सजा लो तुम
ये इन्क़लाबी मौसम ना आएगा दोबारा
एक आतिशी हसरत को दामन से हवा दो तुम
बुझता हुआ चराग़ भी जल जाएगा दोबारा
समंदर का नज़ारा
बड़ा अजीब है इस बार समंदर का नज़ारा
कश्ती को ढूँढने ख़ुद साहिल निकल पड़ा है
एक बूढ़ी सी चट्टान ने सागर को दी सलाह
कुछ इंतज़ाम कर लो ये तूफ़ान बड़ा है
उठ उठ के पूछती हैं बेचैन सी लहरें
क्यूँ रो दिया जो उम्र भर ग़र्दिश से लड़ा है
साया भी जा छुपा है मेरे पाँव के नीचे
सूरज न जाने कब से मेरे सर पे खड़ा है
Sunday 21 August 2011
सुन कर मेरी सदायें
मंजिल तो ख़ुद ही चल कर मेरे दर पे आ गयी है
तू छोड़ दे ऐ ज़ालिम यूँ मुझको आज़माना
क्या पायेगा भला तू अब मेरा क़त्ल करके
सुन कर मेरी सदायें जब चल पड़ा ज़माना
शर्मिंदा ही किया है हर बार घर पे अपने
मिलना हो अगर तुमको तो मेरे घर ही आना
करते हैं बहस हाक़िम पानी कहाँ से लायें जब ख़ाक़ हो रहा है जल जल के आशियाना
Thursday 18 August 2011
मुझे न रोकना...
किसी शराब का उतरा हुआ ख़ुमार हूँ मैं
मुझे न रोकना जाती हुई बहार हूँ मैं
यूँ गुज़र जाऊँगा छू कर के तुम्हारे गेसू
तुम्हारे सहन में बहती हुई बयार हूँ मैं
मेरा नसीब न था तुम भी मेरे हो जाते
तुम्हारे चाहने वालों में एक शुमार हूँ मैं
कभी तो आओगे तुम भी हमारी बस्ती में
मैं मुंतज़िर अभी ज़िंदा हूँ तलबगार हूँ मैं
Tuesday 16 August 2011
जब बोलता है दर्द
बस थोड़ी दूर जाती है लबों की हरकतें
हर कोई यहाँ अपनी ही ज़बान सुनता है
सूबों में नहीं बटते ये दिल के फैसले
जब बोलता है दर्द हिन्दुस्तान सुनता है
वो क़त्ल कर के दे रहा है अपनी सफाई
ये झूठी दलीलें बस एक नादान सुनता है
बेकार की बहस एक वहशी से भी क्यूँ हो
इंसान की बातें बस एक इंसान सुनता है
तेरी समझ न आयेंगे ये रब के इशारे
तारे भी जिसे सुनते हैं जहान सुनता है
Monday 15 August 2011
क्या सबेरा आएगा ?
भेड़ियों से घिर गया है हिरन
सारा जंगल मौन रह कर देखता है
क्या हिरन बच पायेगा ?
रात के पंजो से घायल किरन
मेरा दिल मुझसे यही अब पूछता है
क्या सबेरा आएगा ?
रह रह के भीगते हैं ये नयन
एक गांधी जो कब का मर चुका है
हर रोज़ मारा जाएगा ?
सोच कर डूबता है प्यासा मन
ये काला बादल जो हर घड़ी गरज़ता है
क्या बारिशें भी लाएगा ?
Friday 12 August 2011
करवटें लेता बदन
रात गुमसुम ढल रही है करवटें लेता बदन
अब सुनायी दे रही है दिल की भी आवाज़ कम
बेरहम तनहाइयां ये दे रही हैं मशविरा
तेरी यादों के क़फ़न अब ओढ़ कर सो जाएँ हम
मेरे माथे की लकीरों में छिपे हैं मेरे घाव
मेरी आँखों की नमी में घुल गए हैं मेरे ग़म
तुम भी रोये मैं भी रोया ,थीं फ़क़त आँखें जुदा
हमने मिलजुल के उठाये हैं जुदाई के सितम
Thursday 11 August 2011
अब सो गया है ये मदहोश शहर
तू है ग़फलत में कोई और बचा लेगा तुझे
जो ख़ुद ही डूब गया ख़ाक संभालेगा तुझे
न देख बिछड़े चमन को अब इतनी हसरत से
कोई नहीं जो वहां फिर से बुला लेगा तुझे
नाख़ुदा डर के कहीं छुप गया है मौजों से
चढ़ते दरिया से भला कौन निकालेगा तुझे
अब सो गया है ये मदहोश शहर तू भी सो
कोई जो रिंद जगेगा तो जगा लेगा तुझे
Wednesday 10 August 2011
मैंने पूछा बहती बयार से
तनहाइयों को लगा गले हम राहे शौक़ से गुज़र गए
बदनामियों का जिन्हें खौफ़ था वो बीच ही में ठहर गए
सारी उम्र काली रातों में जिन्हें ज़िंदगी की तलाश थी
खुली धूप लाई नयी सुबह तो वो रौशनी से ही डर गए
मैंने पूछा बहती बयार से ,मेरे साथ थे वो किधर गए
मुझे हंस के यूँ बहला गई ,या उधर गए या इधर गए
जो ग़र इंतिहा ऐ ज़ुल्म हो , अब कोई कुछ कहता नहीं
लगता है लोग शहर के अपनी मौत से पहले मर गए
बदनामियों का जिन्हें खौफ़ था वो बीच ही में ठहर गए
सारी उम्र काली रातों में जिन्हें ज़िंदगी की तलाश थी
खुली धूप लाई नयी सुबह तो वो रौशनी से ही डर गए
मैंने पूछा बहती बयार से ,मेरे साथ थे वो किधर गए
मुझे हंस के यूँ बहला गई ,या उधर गए या इधर गए
जो ग़र इंतिहा ऐ ज़ुल्म हो , अब कोई कुछ कहता नहीं
लगता है लोग शहर के अपनी मौत से पहले मर गए
Tuesday 9 August 2011
अगर हम भूल सकते तो
मेरी दीवानगी का लोग एक क़िस्सा बना लेते
अगर हम तुमको अपने दर्द का हिस्सा बना लेते
बहारों ने बढ़ा दी है नफ़स में इतनी बैचैनी
खिज़ां में टूटते पत्ते भला कब तक हवा देते
नतीजा क्या हुआ है मेरी उस अर्ज़े तमन्ना का
तुम हाँ या ना में अपना कुछ तो फैसला देते
किसे होता है इतना शौक़ अपना जी जलाने का
अगर हम भूल सकते तो तुम्हे कब का भुला देते
हिम्मत से खड़े है
जो शजर सारी उम्र मौसमों से लड़े हैं
अब भी बुलंद हैं उसी हिम्मत से खड़े है
शाखों ने जिनकी रोज़ झुकाए हैं अपने सर
वो टूट कर हवाओं से पैरों में पड़े हैं
रोटी जो अपने हिस्से की औरों में बाँट दें
वो हैं ग़रीब फिर भी अमीरों से बड़े हैं
घायल हैं मेरे पाँव पर दीवानगी देखो
जायेंगे तेरे गाँव इसी ज़िद पे अड़े हैं
Monday 8 August 2011
कई पैबंद हैं सिलने
कई चेहरे मिले हमसे ,तो क्या हासिल किया दिल ने
तमन्ना जिसकी हमने की , वही आया नहीं मिलने
जिन्हें हम रूह का हिस्सा समझ बैठे थे वो ही गुल
सुना है ग़ैर के गुलशन में , अब जाकर लगे खिलने
सितारों से जड़ी पोशाक को देखा जो हसरत से
तो याद आया कमीज़ों में कई पैबंद हैं सिलने
मेरी बेबस सी फरियादें , तेरा इनक़ार कर देना
ये ही तोहफ़े दिए हैं सिर्फ हमको तेरी महफ़िल ने
Sunday 7 August 2011
एक रौशनी की क़ीमत
ग़र मैंने की ख़ताएँ मुझको मुआफ़ कर दे
अब और तेरी दुश्मनी मुझसे नहीं निभेगी
बेनूर ज़िंदगी में रंग की कमी बहुत है
तेरी दोस्ती की चाहत मुझे उम्र भर रहेगी
पूछेगी ज़िन्दगी जब गुनाह उम्र भर के
मैं उससे क्या कहूँगा वो मुझसे क्या कहेगी
एक रौशनी की क़ीमत दोनों को देनी होगी
परवाने भी जलेंगे और शम्मा भी जलेगी
Saturday 6 August 2011
सच को बचाए रखना
रुसवाइयां मिलेंगी इन प्यार की राहों में
दुनिया की रवायत है कुछ तो करेगी बात
हम ढूंढते हैं रब को मासूम निगाहों में
क्यूँ फ़िक्र करें उसकी जो दिन को कहे रात
एक ख्वाहिशे जन्नत से दोज़ख बनी ज़मीं है
मेरे लिए है काफी ग़र तू है मेरे साथ
है जीने की जो हसरत, सच को बचाए रखना
यूँ ही बनाए रखना हाथों में मेरा हाथ
Friday 5 August 2011
कैसा है ये प्यार का अंदाज़
आँख से ओझल है जब परवाज़
क्यूँ भला अब दे रहे आवाज़
सर्द साँसों में सहम कर सो गए
मेरी उस दीवानगी के राज़
एक बस मैं ही सहूँ सारे सितम
कैसा है ये प्यार का अंदाज़
रात रोई है बनी है तब ये शबनम
कितना भीगा सहर का आग़ाज़
तोड़ कर ले जायगा कल बागवाँ जिन गुलों पर है चमन को नाज़
हैं सितमगर आज सब गद्दीनशीन
आदमी जीने को है मोहताज
Thursday 4 August 2011
अक्सर सभी फिसलते हैं
बंजर ज़मीन है जो तेरे पाँव तले अच्छा है
चमकते फर्श पे अक्सर सभी फिसलते हैं
एक बुरे वक़्त में होती है दिलों की पहचान
जब भी हालात बदलते हैं दिल बदलते हैं
जला के जिसका बदन सब ने घर किया रोशन वो बुझ गया है तो अब लोग हाथ मलते हैं
निभानी होती है महफ़िल में रस्म हंसने की
पर हक़ीक़त है मेरे दिल में दर्द पलते हैं
Wednesday 3 August 2011
बना रख मुझे शरीक़े ग़म
मैंने फैलाए नहीं हाथ कभी अपने लिए
किसी के अश्क़ जो पी लूँ वो मेरी आदत है
कुछ और देर बना रख मुझे शरीक़े ग़म
ऐसा लगता है कि तुझको मेरी ज़रुरत है
न पूछ मुझसे तू मेरे ज़ख्मों का हिसाब
झुकेगा उम्र भर ये सर तेरे ही दर पे रब
तेरी नज़र जो उठे इस तरफ तो किस्मत है
एक टुकड़ा तो बचा रखिये अपनी ग़ैरत का
सरे बाज़ार जो बिक जाइए तो लानत है
किसी के अश्क़ जो पी लूँ वो मेरी आदत है
कुछ और देर बना रख मुझे शरीक़े ग़म
ऐसा लगता है कि तुझको मेरी ज़रुरत है
न पूछ मुझसे तू मेरे ज़ख्मों का हिसाब
मुझे बता कि तेरे दर्द की क्या हालत है
झुकेगा उम्र भर ये सर तेरे ही दर पे रब
तेरी नज़र जो उठे इस तरफ तो किस्मत है
एक टुकड़ा तो बचा रखिये अपनी ग़ैरत का
सरे बाज़ार जो बिक जाइए तो लानत है
Tuesday 2 August 2011
चल आ निकल
चल आ निकल बहती हवा में झूम लें
इस भागते पल को पकड़ कर चूम लें
लिख दें हर दीवार पर अब ये इबारत
ज़िंदगी को ज़िंदा रखती है मोहब्बत
हैं फ़लक की ओर खुलती खिड़कियाँ
जो भी गया तो फिर नहीं लौटा यहाँ
क्या मिलेगा गुमशुदा का ग़म मनाने में
जल चुकी तस्वीर के टुकड़े मिलाने में
Monday 1 August 2011
है बे आबरू ये रूप
छिप गया सूरज तो देखो रो पडी है धूप
ढल गयी है उम्र अब बे आबरू है रूप
बेरहम है वक़्त की चलती हवा
किसका दामन भीग जाए क्या पता
ऐसा ही होता है हर एक मर्तबा
ज़िंदगी देती है क्यूँ ऐसी सज़ा
दरमियाँ है नींद का लम्बा सफ़र
कल खुली जो आँख तो होगी सहर
कैसे कर दूँ मैं ये वादा शाम से
जश्न कल होगा मेरे ही नाम से
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