Wednesday 31 August 2011

चढ़ता है आफताब

चढ़ता है आफताब तो झुकती है ये दुनियाँ
तू बन एक ऐसी शाम  हो
जिसका
  एहतराम
भरता जा तू  दिलों में  पैग़ामे मोहब्बत
जब जाए इस जहाँ से
ज़माना करे सलाम 
हक़ीक़त को आंकने के नज़रिए में फ़र्क़ है 
आधा है जो खाली वही आधा भरा है जाम

इस दुनिया ए फ़ानी के हैं अंदाज़ निराले
आने के साथ होता है जाने का इंतज़ाम 
मत  रो ऐ मेरी आँख ,  छिपा ले ये आंसू
ये भीगी हवाएं तुझे कर  डालेंगी बदनाम
 

 

 

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