Tuesday 16 August 2011

जब बोलता है दर्द

बस थोड़ी दूर जाती है लबों की हरकतें
हर कोई यहाँ अपनी ही ज़बान सुनता है

सूबों में नहीं बटते ये दिल के फैसले
जब बोलता है दर्द हिन्दुस्तान सुनता है

वो क़त्ल कर के दे रहा है अपनी सफाई
ये झूठी दलीलें बस एक नादान सुनता है

बेकार की बहस 
एक वहशी से भी क्यूँ हो
इंसान की बातें बस एक इंसान सुनता है

तेरी समझ न आयेंगे ये रब के इशारे
तारे भी जिसे सुनते हैं जहान सुनता है

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