Thursday 16 January 2014

तुम्हारे साथ नज़र आउंगा

मैंने तो खुद नहीं देखे सपने
फिर भला तुमको क्या दिखाऊंगा
करोगे जब भी कुछ वतन के लिए
तुम्हारे साथ नज़र आउंगा

कौन बच पाया है इस दुनिया में
दोनों मरते हैं मक़तूल भी क़ातिल भी
करोगे जब भी कुछ अमन के लिए
तुम्हारे साथ नज़र आउंगा

खिलते इन फूलों का मज़हब है क्या
देती है नूर इनको बहती हवा
करोगे जब भी कुछ चमन के लिए
तुम्हारे साथ नज़र आउंगा

Tuesday 14 January 2014

फिर उन्ही राहों पे मुड़ना होगा

वक़्त कहता है कि उड़ना होगा
मिले थे तुमसे, बिछुड़ना होगा

बहुत सताएगी तन्हाई हमें
तुम्हारी यादों से जुड़ना होगा

दूर तक कोई भी हमदम न मिले
फिर उन्ही राहों पे मुड़ना होगा

भूल बैठे थे जो क़द झूमती हवाओं में
उन्ही पंखों को सिकुड़ना होगा