Sunday 31 July 2011

थी जिनसे उम्मीदें

निकले थे घर से हम एक इन्सां तलाशने
हमको न जाने कितने ही भगवान मिल गए

जब भी चले जगाने कुछ जीने की हसरतें
दिल के क़रीब मौत के सामान मिल गए

थी जिनसे उम्मीदें न मिली उनसे तसल्ली 
कुछ दर्द बांटने को अनजान मिल गए
सोचा था कुछ मिलेंगे चमनज़ार राह में 
ये देखिये क़िस्मत क़ि बयाबान मिल गए 

Saturday 30 July 2011

उनको तो शिकायत है

अब यारी कर चुके हैं तारीकीयों से हम
ग़र आये रोशनी तो ख़ुद अपनी गर्ज़ पर

पानी तो आँखों का कब का गया है सूख
और लहू बह रहा है पानी की तर्ज़ पर

तक़लीफे बदन हो तो कोई हो सके इलाज
है चारागर हैरान इस हवस के मर्ज़ पर

अब किस से कहे जाके कोई ज़ुल्म के क़िस्से
उनको तो शिकायत है शिकायत की दर्ज पर

Thursday 28 July 2011

ज़ख्म बहुत गहरे हैं

नज़र उठा और ख़ुद्दारी बचा के बातें कर
वो नज़र भी क्या जिस पे हज़ार पहरे हैं

हवा परस्त बहे होंगे हवा के रुख़ के साथ
हम जहाँ ठहरे थे अब भी वहीँ पे ठहरे हैं
न दे  सफाई  मुझे   अपनी बेवफ़ाई  की
मेरे सीने में लगे ज़ख्म बहुत  गहरे हैं

नर्म लहज़ों में  छिपा है सब इनका फ़रेब
सफ़ेद   रंगों  से  चमके   सियाह चेहरे हैं 

Tuesday 26 July 2011

इतना उंचा भी न उड़

इतना उंचा भी न उड़ भूल कर अपनी औक़ात
कि जब गिरे तो ज़मीं पर भी आसरा न मिले

इस बुरी तरहा न ठुकरा तू किसी के जज़बात
कि कल कोई चाहने वाला भी दूसरा न मिले

इसके  टुकड़े यूँ   न कर ये है भरोसे की ज़ंजीर
जो अगर जोड़ना चाहे भी तो सिरा न मिले

कर संभल कर के वो काम कि जिनका अंजाम
ग़र जो अच्छा न मिले कमसकम बुरा न मि
ले

Monday 25 July 2011

और तुम याद आ गए

सूनी सूनी शाम के पल स्वप्न से टकरा गए
और तुम याद आ गए
छा गई लाली क्षितिज के सुरमई रूखसार  पर
जैसे तुम शरमा गए
इतनी ज्यादा बढ़ गयीं हैं अब  दिलों की दूरियां
फ़ासले घबरा गए
ऐसा लगता है चमन से फिर कोई जाने को है
गुल ये क्यूँ  मुरझा गए ?
 

Sunday 24 July 2011

अब ग़र्क हो ज़मीन

हासिल तुम्ही से की हैं उसने ऊँची सीढ़ियाँ
वो जीत गया है चुनावी इम्तिहान में
अब  ग़र्क हो ज़मीन भी तो क्या  है उसको फ़र्क़
वो घर बना चुका है अलग आसमान में
पहचान वाले ले गए सब ऐश के सामान
तेरे लिए कुछ ग़म ही बचे हैं दुकान में


दीवाने ख़ास  में चलेगा दावतों का दौर
भूखों को लगाया  है उसके  इंतज़ाम में

 

Saturday 16 July 2011

मेरा जी बहुत उदास है

यूँ ही रात सारी निकल गई , कोई ख्वाब भी न गले मिला
लो शमा की उम्र भी ढल गई , मुझे जुगनुओं की तलाश है

घनी छाँव वो तेरी ज़ुल्फ़ की, किस गली के मोड़ पे छुट गई
मेरे पास आ मेरी ज़िन्दगी , मेरा जी बहुत उदास है
मुझे दे गए बड़ी राहतें  ,मिले राह में कई अजनबी
वहीँ गर्दिशों ने  सिखा दिया , वो ही दूर है जो भी पास है

ये ही कहते हैं सभी राहजन , बड़ी दूर अब वो चला गया
हैं  अजीब  दिल की  हसरतें ,उसे अब भी मिलने की आस है 

Wednesday 13 July 2011

दिल में दरिया के

दिल में  दरिया के  छुपा  है कौन सा  राज़
जान पाते हैं इसे सिर्फ डूबने वाले

बुलाते रहना कभी लौट कर न आऊंगा
मुझे  भी आते हैं अंदाज़ रूठने वाले
कोई गुंचा  भी जो टूटे  तो  खनक होती है
बड़े  चुपचाप  टूटते हैं टूटने वाले
न कोई अपनी खबर और न पता मंज़िल का
क्या  बताऊँ मैं तुझे ,मुझसे पूछने वाले




 

Monday 11 July 2011

पानी में तेरा अक्स

किसी के हाथ का पत्थर बना गया लहरें
पानी में  तेरा अक्स  पानी पानी हो गया

मेरे इस आँख के पानी से बन गयीं ख़बरें
तुझे बस चाह  लेना  एक   कहानी हो गया
कितनी आसान थी  तिजारत   दिल  की
कुछ  लिया न दिया सब  मुंहज़बानी हो गया
दिल पे एहसान है एक तेरी बेवफ़ाई का
वो तेरा ग़म मोहब्बत की निशानी हो गया

ये पेड़ गुलमोहर का

तुम ही तो खेलते थे इन शजर के फूलों से
लगता है कोई किस्सा , जैसे पिछले पहर का

अब जब भी पूछती है तुम्हारा पता नसीम
चुपचाप सा रहता है ये पेड़ गुलमोहर का

साँसों में बस गई है ,तेरे बदन की खुशबू
गुज़रा है इक इधर से ,झोंका तेरे शहर का

लग जाए न  नज़र को किसी और की नज़र
अब  इतना बढ़ गया है चर्चा तेरी नज़र का  
 

Sunday 10 July 2011

छूटा तेरा आँचल


मैं जितना भी चाहूँ , तुझे अब छू नहीं सकता
मुझको न  दे आवाज  ,   मेरे गुज़रे हुए कल


करता  ही रह गया मैं  ,हवाओं से फ़रियाद
जब एक बार हाथ से,  छूटा तेरा आँचल

दरिया  से कह रहा हूँ,  मेरे  शहर में रुक
बांहों  में भर के कहता है , चल मेरे साथ चल

क्या रोक सकीं हैं, उसे राहों की उलझनें
तूफ़ान निकल जाता है ,रस्ते बदल बदल

कब  कौन सी बयार,मिटा जाए तेरा  नाम
जीना है अगर जी ले  , है उम्र  चार पल

Saturday 9 July 2011

मेरी आँखों में धूळ पड़ी

जो लमहे साथ गुज़ारे थे ,ख़्वाबों में  आने लगते हैं
गहरे ज़ख्मों को भरने में भी कई ज़माने लगते हैं

जिनका सूरज है अभी उगा ,  क्या कहना उनकी  रंगत का
जिनके जीवन की शाम हुई  ,वो लोग  पुराने लगते हैं

मेरी आँखों में धूळ पड़ी , मैं बिलकुल रोया नहीं अभी
ये अपना दर्द छिपाने के, कुछ नए बहाने लगते हैं

दुनिया की रस्म निभाने को ,हम लोगों से क्या बात करें
वो खुशी सुनाने लगते हैं , हम चोट गिनाने लगते हैं

लोग हैं नाआशनां

एक तो है लम्बा सफ़र और मुश्किलें हर मोड़ पर
तुम जो कहते हो तुम्हे जाना है अब दर छोड़ कर

लोग हैं नाआशनां और उसपे अनजाना शहर
कौन फिर बांटेगा मुझसे ये मेरा दर्दे जिगर 
मैंने ग़र चाहा है कि मेरा  भी हो कोई हमनफ़स
बिजलियों ने घर जला डाला है उससे पेशतर 
 

Friday 8 July 2011

ज़िन्दगी एक मयकदा

हर शख्स है प्यासा यहाँ ,है ज़िन्दगी एक मयकदा
जाम उतना ही मिलेगा ,जितना क़िस्मत में बदा

कल न पीने की क़सम, खाता रहा जो रात भर
सुबह ने देखा है उसको , फिर क़तारों में खड़ा

रोज़ जो कहता था मय अब हो गयी है बेअसर
आज क्यूँ वो रिंद कुछ पीये बिना ही गिर पड़ा

उम्र भर पीते हैं हम फिर उम्र पीती है हमें
तब समझ आता है पीना ज़ुर्म है कितना बड़ा
 

Thursday 7 July 2011

क्यूँ ईश्वर ढूंढे गली गली

नयनों से छलकी मदिरा की क्यूँ लगती है  बरसात भली
बिन पिए मुसाफ़िर   बहक गए , जब रूप की तेरे बात चली
वो  रूह के अन्दर बैठा है , तेरी रग रग में शामिल है
फिर पूजा की थाली लेकर , क्यूँ ईश्वर ढूंढे गली गली
मैंने जीवन में बहुत सहा ,पर तुमसे कुछ भी नहीं कहा
मुझको भी रोना आता है ,मेरे मन में  भी पीर पली

इस  दिल के सख्त अंधेरों में,
एक प्यार की शम्मा रहती है

मैं जलता बुझता रहा सदा ,वो हरदम मेरे साथ जली 

पर मकां भी इतना न दूर हो

न राहें अपनी बदल सके ,न दिल के क़रीब ही आ सके
पर ये भी सच है कि उम्र भर, तुझे भूलकर न भुला सके

वो थकन , अधूरी सी हसरतें ,मेरे अश्क बन के बरस गयीं
सारे हर्फ़ लब पे ही रुक गए ग़म ऐ दिल उन्हें न सुना सके

तू जहाँ कहे मैं वहां रहूँ, पर मकां भी इतना न दूर हो
मैं किसी के दर पे न जा सकूँ,कोई मुझको घर न बुला सके
जाने कितनी आई है मंजिलें ,मेरी रातों की नींदें उड़ा गयीं
कोई ऐसी भी तो जगह बता , मुझे चैन से जो सुला सके

Monday 4 July 2011

कैसी ये आराधना है ?

वो सुलगती रेत पर अक्सर  अकेला ही चला है
समय बस साक्षी बना है

पहले सूली पर चढ़ा दो ,फिर उसे ईश्वर कहो  तुम
पहले गोली से उड़ा दो ,बाद में पूजा करो तुम

हम सभी ने अपने उस आराध्य को मिल कर छला है
कैसी ये आराधना है ?

तेरा ग़र आना सही था तेरा जाना भी सही है
उम्र भर  का जोड़  देखो  कुल मिला कर शून्य ही है

दुःख  क्यूँ जाएगा हृदय से वह तो बचपन से पला है
सुख को बस आना मना है


आया है जो जाएगा वो , ये  प्रथा ही चलती आई
व्यर्थ है  श्रंगार तेरा  , होनी है एक दिन  विदाई


छोड़ कर जाना है तुझको इस धरा पर जो मिला है
आईने से सामना है   

वो सुलगती रेत पर.......





Sunday 3 July 2011

तेरी उंचाइयां ए आसमां


किस तरह पाऊं तेरी उंचाइयां ए आसमां
पंख मेरे गिर चुके हैं ,तू भी कितना दूर है
क्यूँ भला  मानेंगे मेरी  बात ये अहले जहाँ
उतना ही गुमनाम मैं, जितना कि तू मशहूर है
ढूंढता है तू सितार्रों में जो अपना आशियाँ
इस ज़मीं पर देख कितना आदमी मजबूर है
अजनबी ये महफ़िलें और  लोग ये नाआशना
तू नहीं तो ये सफ़र अब किस क़दर  बेनूर है
 मेरी हर एक सांस है तेरी हवाओं पे निसार 
तेरी ख़ातिर ऐ वतन  मरना मुझे मंज़ूर है

फिर भी गाता हूँ राष्ट्र गीत

डूबीं सैलाब में कुछ बस्तियां तो क्या ग़म है
हाकिमे शहर का घर तो सही सलामत है
पिछले हफ्ते ही तो डाले थे निवाले तुमको
चार दिन भूखे भी रह लोगे तो क्या आफ़त है
चंद लोगों में ही बँट जाय  वतन की दौलत
तुम्ही समझाओ कि ये कौन सी सियासत है

कि  खड़ा हो  सकूँ  पैरों में वो ताकत ही नहीं 
फिर भी गाता हूँ राष्ट्र गीत ये मेरी हिम्मत है


मैं जो मर जाऊँगा तो फिर तू भी जियेगा कैसे
मेरी ग़ुरबत मेरी मजबूरी  तेरी ताक़त है

जिस हुक़ूमत में नहीं मिलते क़फ़न मुर्दों को
मेरे बदन पे हैं कुछ कपडे बहुत  ग़नीमत है





Saturday 2 July 2011

चंद टूटे हुए मोती

चंद टूटे हुए मोती वो तेरी यादों के
ग़म के दरिया में  धो लिए होते
कुछ तो कम होती  सीने की जलन
हम भी औरों की तरह  रो लिए होते