Saturday 9 July 2011

मेरी आँखों में धूळ पड़ी

जो लमहे साथ गुज़ारे थे ,ख़्वाबों में  आने लगते हैं
गहरे ज़ख्मों को भरने में भी कई ज़माने लगते हैं

जिनका सूरज है अभी उगा ,  क्या कहना उनकी  रंगत का
जिनके जीवन की शाम हुई  ,वो लोग  पुराने लगते हैं

मेरी आँखों में धूळ पड़ी , मैं बिलकुल रोया नहीं अभी
ये अपना दर्द छिपाने के, कुछ नए बहाने लगते हैं

दुनिया की रस्म निभाने को ,हम लोगों से क्या बात करें
वो खुशी सुनाने लगते हैं , हम चोट गिनाने लगते हैं

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