Friday 8 July 2011

ज़िन्दगी एक मयकदा

हर शख्स है प्यासा यहाँ ,है ज़िन्दगी एक मयकदा
जाम उतना ही मिलेगा ,जितना क़िस्मत में बदा

कल न पीने की क़सम, खाता रहा जो रात भर
सुबह ने देखा है उसको , फिर क़तारों में खड़ा

रोज़ जो कहता था मय अब हो गयी है बेअसर
आज क्यूँ वो रिंद कुछ पीये बिना ही गिर पड़ा

उम्र भर पीते हैं हम फिर उम्र पीती है हमें
तब समझ आता है पीना ज़ुर्म है कितना बड़ा
 

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