Thursday 3 December 2015

तू रहना सबसे पीछे

वक़्त एक पल भी पीछे नहीं जाता है
यादें  ले जातीं हैं बरसों पीछे

वो जाने वाला राहे अदम जानता है
यूँ चला जाता है आँखें मीचे

जितने दिखते हैं उससे भी  ज़्यादा
दबे हैं लोग ज़मीं के नीचे

ले मैं लाख बरस तेरे नाम करता हूँ
तू बचे रहना सबसे पीछे

Wednesday 16 September 2015

आया करोगे याद

जाएंगी तेरी यादें बस  ज़िंदगी के बाद
जब तक चलेंगी धड़कनें आया करोगे याद

अब जितना दूर कर दें जलते हुए ये दिन
आयेंगी सर्द रातें आया करोगे याद

घिर आएंगे अँधेरे टूटेगा जब बदन
तारों से होंगी बातें आया करोगे याद

लो देखो फिर चलीं हैं भीगी हुई हवाएँ
भीगेंगी फिर से पलकें आया करोगे याद

Monday 14 September 2015

और हम थे तरसते रहे दीदार के लिए

इक आईने ने देखा तुमको हज़ार बार
और  हम थे तरसते रहे दीदार के लिए

ना जाने कितनी बातें कीं  दुनियाँ  से आपने 
दो बोल प्यार के न थे बीमार के लिए

सब उड़ गए परिंदे अब आसमान में
क्यों हम भी जी रहे हैं बेकार के लिए

अक्सर दिखे हैं  आपके इनकार के तेवर
खोला भी करिये लब कभी इक़रार के लिए

Thursday 3 September 2015

नींद आ जाए वो नसीब कहाँ

नींद आ जाए वो नसीब कहाँ
रातें आ आ के जलातीं हैं सौतन की तरह

बहुत सताया है ज़िंदगी तुमने
जी करे है कि रूंठ जाएँ बचपन की तरह

दर्द जो हर घड़ी छलकता है
काश कि ये भी बरस जाता सावन की तरह

निकल गया  जो  मन के आँगन से
फिर नहीं लौटा  गुज़रे हुए जीवन की तरह

Friday 28 August 2015

तुम बिना बात क्यूँ नहीं मिलते

सिर्फ मिलते हो किसी मक़सद से
तुम बिना बात क्यूँ नहीं मिलते

इतना उजड़ा है अब चमन कि यहां
मौसमी फूल भी नहीं खिलते

तसल्लियों का खज़ाना तो सभी रखते हैं
ज़ख्म दिखते हुए नहीं सिलते

वादा उसने किया था कल का हमें
आज भी रह गया मिलते मिलते

Wednesday 26 August 2015

तूने मोहलत न दी संभलने की

हमको बर्बाद यूँ ही होना था
अपनी फितरत न थी बदलने की

न गिरते इस तरह हम तेरे दर पे ऐ साक़ी
तूने मोहलत न दी संभलने की

न कोई ज़िक्रे सुबह और न इंतज़ामे शाम
बात उठ्ठी है रात ढलने की

रिन्द गिरने लगे हैं अब तेरे मयखाने में
सोचते हम भी हैं निकलने की

Saturday 22 August 2015

यहाँ दैरो हरम लड़ते हैं

ग़ुलों के साथ कांटे हैं हवाएँ गर्म बहती हैं
न जाने फिर भी क्यूँ हमसे चमन छोड़ा नहीं जाता

यहाँ दैरो हरम लड़ते हैं अपनी रूह घुटती है
मगर हम हैं कि हमसे ये वतन छोड़ा नहीं जाता

ऐ याराँ कितने हैं दिलकश नज़ारे और दुनियां में
कहाँ जाएँ कि अब तेरा सहन छोड़ा नहीं जाता

ज़माना रोज़ कहता है जवाँ अब हो गया है वो
मगर उस बेख़बर से बालपन छोड़ा नहीं जाता

Wednesday 22 July 2015

पूछ लेना तेरा मज़हब क्या है

जब भी जाए इस वतन की हवा साँसों में
पूछ लेना तेरा मज़हब क्या है
गर जो काफ़िर वो निकल जाए कहीं
हो जो हिम्मत उसे लौटा देना

Thursday 16 July 2015

डर लगता है

बारहा यूँ न आ तसव्वुर में
प्यार हो जाएगा डर लगता है

सुबह की धूप जैसा चेहरा तेरा
ये सच नहीं है मगर लगता है

इश्क़ के ज़ख्म तो भर जाते है
दर्द क्यूँ सारी उमर लगता है

लोग रोते हैं यहां शामो सहर
फिर भी खामोश शहर लगता है

Tuesday 17 February 2015

कौन सा

किसके लिए रोया था रात पूछती है सबा
कौन सा रिश्ता था तुझसे जो बता देता

Monday 12 January 2015

दर्द का उन्वान हूँ मैं

नग़मा ए दर्द का उन्वान हूँ मैं
वक़्त से जूझता इंसान हूँ मैं

जिसने देखा उठा के चलता बना
घर से फेंका हुआ सामान हूँ मैं

ज़िंदा रहने दे मुझे पैकरे हुस्न
मैं इश्क़ हूँ कि तेरी शान हूँ मैं

मुझको सीने से लगाले हमदम
तेरा साया तेरा ईमान हूँ मैं