Thursday 3 September 2015

नींद आ जाए वो नसीब कहाँ

नींद आ जाए वो नसीब कहाँ
रातें आ आ के जलातीं हैं सौतन की तरह

बहुत सताया है ज़िंदगी तुमने
जी करे है कि रूंठ जाएँ बचपन की तरह

दर्द जो हर घड़ी छलकता है
काश कि ये भी बरस जाता सावन की तरह

निकल गया  जो  मन के आँगन से
फिर नहीं लौटा  गुज़रे हुए जीवन की तरह

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