Saturday 28 April 2012

सुबह आयी है ख़बर

सुबह आयी है ख़बर ज़िंदा हूँ
कल था चर्चा, नहीं रहा हूँ मैं

एक ग़ज़ल लिखी है तेरे नाम
उसी की धुन बना रहा हूँ मैं

दिया सच का हवा से न बुझे
हथेलियों को जला रहा हूँ मैं   

होठ हँसते हैं जिगर घायल है 
रस्मे दुनियाँ निभा रहा हूँ मैं

Monday 23 April 2012

चुप हो गए हैं साज़

ठहरे पानी में लहर उठे पल में मिट जाए
कुछ इस तरह से आ के गए ज़िंदगी से तुम

उठ चुकी है महफ़िल चुप हो गए हैं साज़
क्यूँ देता है आवाज़ अब भी तेरा तरन्नुम

कश्ती को समंदर में ले जाना है आसान
डूबेगी , पार जायेगी ये किसको है मालूम

तू जान भी दे दे तो नहीं बदलेंगे ये लोग
नंगों के शहर में हैं खुद्दार बहुत कम

 

Sunday 22 April 2012

ये रंगे हिना


कौन जाएगा यहाँ से  और कौन आएगा 
होता है ये हम सब की  इजाज़त के बिना

मरने  वालों ने आगाह किया है फिर भी
कौन जी पाया ज़माने में मोहब्बत के बिना
न मिट सकेंगे मेरे दिल पे निशां चोटों के
तेरे हाथों से उतर  जाएगा ये रंगे हिना

तूने तो रखा  होगा अपने तीरों का हिसाब
न मैंने  वार  गिने और नहीं ज़ख्मों को गिना

दुआओं की तरह


चमन में खेलती इठलाती हवाओं की तरह
घरों में बेटियां आतीं हैं दुआओं की तरह

मैंने एक नाम पुकारा था कभी सावन में
मन के आँगन में बरसता है घटाओं की तरह

इलाज जिसका कोई कर सके न चारा गर
दो मीठे बोल असर करते दवाओं की तरह

प्यार के नग़में सुनाता हूँ पर्वतों को मैं
गूंजते हैं मेरे कानों में सदाओं की तरह

Wednesday 18 April 2012

बच के रहिएगा शमाओं से


बच के रहिएगा शमाओं से तो अच्छा होगा
आग लग जाती  है तिनकों के घर में

कहीं से ढूंढ के रक्खो तुम एक अपना क़ातिल
अब अपनी मौत से मरता नहीं कोई शहर में


अपनी  बाहों में छिपा ले ऐ आसमां इसको 
ज़मीं महफ़ूज़  नहीं अपने ही दीवारो दर में 


मत गिनो उनको जो देहलीज़ पे जलते हैं चराग़
न जाने कौन सा बुझ जाए आज रात भर में

Monday 16 April 2012

आँख लगी है अभी

ये मानता हूँ निकल आया सलोना सूरज
उसे सोने दो उसकी आँख लगी है अभी

मिला है वक़्त अभी और जीते रहने का
तू मिलेगा ये तमन्ना नहीं मरी है अभी
है फ़िक्र उनको कि घर में अभी अँधेरा है
इन चराग़ों में थोड़ी सी रोशनी है अभी

उस परी पैकर के तसव्वुर में मुझे रहने दो
खो गया चाँद मगर दिल में चांदनी है अभी

Tuesday 10 April 2012

काँटों की हिमाक़त

कैसे बयान हो मेरी रूदादे मोहब्बत
डर है कि न मिट जाए कहीं तेरी ये शोहरत

प्यार होगा कोई एक खेल तेरी दुनिया में
समझा है इसे मैंने उस रब की इबादत

कह सकते हो तुम हाँ कोई दीवाना था
मैंने तो इसकी उम्र भर दी है बड़ी क़ीमत

नादाँ हैं चले आते हैं चुनने को यहाँ फूल
उनको नहीं मालूम है काँटों की हिमाक़त

गुनहगार नहीं हो

यूँ  इस तरह  न छिपाओ  चेहरा
खूबसूरत हो,  गुनहगार नहीं हो

कैसे समझाएं अहले दुनियाँ  को
बाज़ार में आये हो , बाज़ार नहीं हो

कोई नहीं बचा है अब शरीफ़ शहर में
एक तुम हो, मानने को तैयार नहीं हो

दर्दे निहाँ से मर गया वो चीखता रहा
और लोग ये कहते रहे बीमार नहीं हो

पिलाई इस क़दर तूने

पिलाई इस क़दर तूने ऐ ज़िंदगी हमको
रगों में खून नहीं अब शराब बहती है

हवा को जितना जला देता है दिन में सूरज
रात भर उसकी तपिश सारी ज़मीं सहती है

एक दिन होगा धुंआ ये तेरा भी शोख़ बदन
ये मैं नहीं ये तेरी ढलती उम्र कहती है

Sunday 8 April 2012

मेरे हाथों में लकीरें हैं कई

मैंने हर बात कही है तुमसे  
तुम भी  कुछ  बात  कहो

मेरे हाथों में लकीरें हैं कई
तुम इनमें से कौन सी हो

नींद आयी थी एक पल के लिए 
होश आया है चलो और सहो

दिल के दरवाज़े से आती यादें
अब कहाँ जाओ कैसे  दूर रहो 

इन हवाओं से क्यूँ लड़े कोई
जहाँ बहती हैं इनके साथ बहो

जुगनुओं की तरह


हर दिल पे नहीं रुकती मोहब्बत की इबारत
कुछ ख़ाली  ही रहते हैं हाशियों की तरह
मैं भी पलकों पे तेरा नाम लिखा करता हूँ
हर्फ़ बह जाते हैं पल भर में आंसुओं की तरह

मुस्तक़िल  रख बना के आग तू निगाहों में
क्यूँ चमकता है रह रह के जुगनुओं की तरह

बड़ा ही बेरहम निकला ये डूबता सूरज
सांझ रोई न रुका वो मेरी खुशियों की तरह

Thursday 5 April 2012

समंदर बन गया होगा

इंसान की आँखों से ही निकला है ये खारा पानी
प्यार रोया होगा सदियों ,समंदर बन गया होगा

मोहब्बत में नहीं घटते कभी भी जिस्म  के छाले
जबीं का  भर गया होगा जिगर में बन गया होगा
 

कई दिन बीत जाते  हैं  इमारत  को बनाने में
तब कैसे एक ही पल में जहां ये  बन गया होगा


है क्या पहचान उस रब की हमें कोई बताये तो   
वो ऐसा है नहीं वैसा ये किस्सा बन गया होगा 
 
कई राहों को एक मरक़ज़ पे मिलते हमने देखा है
निकल जाता है चौराहा तो फिर राहें नहीं मिलतीं

ज़मीं की धूल से अपना बना के रखतीं हैं रिश्ता
इमारत टूटने से ऐसी बुनियादें नहीं हिलतीं

फ़िज़ा माक़ूल रहने से चमन गुलज़ार रहता है
हवाएं गर्म हो जाएँ तो कलियाँ भी नहीं खिलतीं

उसे हम याद करते हैं उसी का ग़म भुलाने को
वो यादें दर्द दे जाती हैं ज़ख्मों को नहीं सिलतीं

Wednesday 4 April 2012

टूटता तारा मैंने देखा है

उठी है उनकी इस ओर नज़र
काश दुनियां यूँ ही ठहर जाए

प्यार में जान है हथेली पर
या लुटे दिल या जल जिगर जाए
काम आयी नहीं है कोई दलील 
मौत मेरी ये काम कर जाए

ज़ेहन में बस गयी है उनकी याद
उससे कह दो उन्ही के घर जाए
लोग इस तरहा हुए  हैं बर्बाद
देखने वाला भी सिहर जाए
टूटता तारा मैंने देखा है
आज की शब कोई न मर जाए


तेरे चेहरे का शबाब

जब नहीं होतीं हक़ीक़त में हसरतें पूरी
दिल को बहलाने चले आते हैं ख्वाब

बड़ा बेदर्द है हरजाई है ये मौसमे गुल
कहीं न लूट ले तुझसे तेरे चेहरे का शबाब
कितनी ताज़ा है और कितनी पुरानी चोटें
दिल भी रखता है क़रीने से उनका हिसाब

तूने मदहोशी में औरों पे किये थे जितने
तुझे देना ही पड़ेगा हर सितम का जबाब

Monday 2 April 2012

सुबह की हवा

जो कहोगे वो दिल से निकाल कर देंगे
मांग लो कुछ भी बस एक अपने सिवा

दिन जो देता है उसे रात मांग लेती है
खाली दामन से खेलती है सुबह की हवा
यूँ हिक़ारत से न देखो तुम मेरा उघड़ा बदन
गर्दिशे वक़्त ने छीनी है मुझसे मेरी क़बा