Tuesday 10 April 2012

पिलाई इस क़दर तूने

पिलाई इस क़दर तूने ऐ ज़िंदगी हमको
रगों में खून नहीं अब शराब बहती है

हवा को जितना जला देता है दिन में सूरज
रात भर उसकी तपिश सारी ज़मीं सहती है

एक दिन होगा धुंआ ये तेरा भी शोख़ बदन
ये मैं नहीं ये तेरी ढलती उम्र कहती है

No comments:

Post a Comment