Sunday 26 February 2012

इसी तरह हुआ है अक्सर

इसी तरह हुआ है अक्सर
ज़रा से लोग लूटते हैं शहर

चेहरे इतने हैं बज़्म में फिर भी
वो नहीं जिसको ढूंढती है नज़र
...
जब से आये हो मेरी आँखों में
नींद आती नहीं है आठों पहर

हम तुझे भूल चुके हैं फिर भी
क्यूँ रुलाता है इतना दर्दे जिगर

ख़ुद को शीशे में देखता हूँ मैं
नज़र आता है क्यूँ तेरा पैकर

उधर होती है सियासत पे बहस
इधर जलता है एक ग़रीब का घर

मेरे आँगन में धूप बाकी है
अँधेरी रात मेरे घर न उत
 

Tuesday 21 February 2012

कोई आवारा हवा

है अगर टूटा तेरा दिल तो अब रोता क्यूँ है
किसी बेदर्द से दिल तूने लगाया होगा
तपते  होठों से नहीं जलते कभी पैमाने
जिगर की आग ने मयख़ाना जलाया होगा
कोई आवारा हवा ख़ाक उड़ा दी होगी
इन मज़ारों पे कोई भी न आया होगा

जो नहीं मिलता है काबे में न बुतखाने में
दिल के आईने में हर वक़्त नज़र आया होगा
 

पागल है कितनी ये नज़र भी


तुम जो चलते हो तो चलते हैं शजर भी
और हमको छोड़ जाते हम सफ़र भी

हर एक सूरत लगती है क्यूँ तेरी सूरत
प्यार में पागल है कितनी ये नज़र भी
...
कितने बरसों देखी हैं राहें तुम्हारी
एक नज़र तो देख लेते तुम इधर भी

एक शब मुश्किल दहकती ख्वाहिशों की
कौन जल सकता है इनमें उम्र भर भी

और कब तक छिप सकोगे तुम ऐ क़ातिल
एक दिन पहचान लेगा ये शहर भी
 

Sunday 19 February 2012

मसीहे रौशनी के

कितने सारे रंग बदले आसमां ने
भूखी थी भूखी है अब भी ये ज़मीं

ढूंढ के लाओ मसीहे रौशनी के
जुगनुओं से तीरगी घटती नहीं

अब खुली आँखों में भी आते हैं ख्वाब
इतनी लम्बी रात यूँ कटती नहीं

सूरतों को ले उड़ा है बीता कल
एक तेरी तस्वीर ही हटती नहीं

Saturday 18 February 2012

बनते है कई ताजमहल

यूँ ही  बेहोश बना रहने दे साक़ी मुझको
होश आने से  उमड़ता है  दर्दों का समंदर

न होता होश तो फिर कैसे चाहता मैं तुझे

आग क्यूँ जलती भला मेरे जिगर के अंदर

ज़बां से कह न सका मैं कभी अपनी चाहत

गो कि वाकिफ़ था मेरे हाल से ये सारा शहर

दिलों में  रोज़ ही बनते है कई ताजमहल

न जाने कब ख़ुदा हो जाए कौन सा पत्थर

Wednesday 15 February 2012

न मिला तू तो

न मिला तू तो कशिश बाक़ी है
ज़िंदा रहने का एक बहाना है
ज़रा ठहर मेरी आँखों में अभी
सूने दिल में तुझे बसाना है
थोड़ी  देर और मिली है मोहलत 
अपने हिस्से की मुझे पीने दे
कोई रास्ता नहीं यहाँ से घर का  
सिर्फ एक आसमां  ठिकाना है 
अब दरख्तों से गिर गए पत्ते
इस बरस तू कोई उम्मीद न कर
जिन हवाओं से नूर बरसा था
उन्हें भी लौट कर के जाना है
वक़्त के इन दहकते शोलों में
क्या जिए बूँद एक शबनम की
सुना चुका हूँ   दास्ताने शिकस्त 
अब मुझे और  क्या सुनाना है
 

 

Tuesday 14 February 2012

कहीं और जा बहती पवन

कहीं और जा बहती पवन, है बदला बदला सा चमन
बुझ गए अब सुर्ख़ चेहरे, खो गया है बांकपन

अब कहाँ झुकती निगाहें, लाज से दोहरे बदन
किस तरह लिक्खेगा कोई ,इन पे अब शेरो सुख़न
...
दस्तूर जीने के बदल डाले हैं बढ़ती ख्वाहिशों ने
रहते थे चिलमन में जो , हैं आज वो नंगे बदन

किसको कहें तन्हाई में मुझसे भी कुछ बातें करो
ये ज़मीं मसरूफ़ है और दूर है इतना गगन

एक खिलोने की खनक से चुप हुआ रोते हुए
उसको देखा तब हमें भी याद आया बालपन
 

Monday 13 February 2012

तेरी आँख से निकले मोती

ये इबादत है इसे दिल में सजा कर रख लो
सरे बाज़ार मोहब्बत को यूँ  रुसवा न करो

हमने भी अश्क़ बहाए हैं बहुत छुप छुप के
भरी महफ़िल में
तुम इस तरह रोया न करो
इस पत्थरों की नुमाइश में किसे समझाएं
टूट जायेंगे ये ज़ेवर   यहाँ  लाया न करो  
बहुत महंगे हैं तेरी आँख से निकले मोती
ज़रा सी बात पे पलकों में सजाया न करो
 

Saturday 11 February 2012

ये मोहब्बत के मक़ाम

हैं मुख्तलिफ़ ये मोहब्बत के मक़ाम
जाने किस मोड़ पे बरबादी लिखी रक्खी हो

तू सोचता है जहाँ कल बनेगा तेरा महल
उसी जगह पे तेरी क़ब्र बनी रक्खी हो
उसके मरने की ख़बर का नहीं है मुझको यकीं
कैसे सह पाऊंगा में बात अगर सच्ची हो

है नया दिन और सितारों ने चाल बदली है
कैसे मुमकिन है शाम कल की तरह अच्छी हो 

Wednesday 8 February 2012

एक और लमहा गुज़रा है

अभी एक और लमहा गुज़रा है 
उम्र बढ़ी या घटी क्या मालूम
पीते रहे हम तेरी यादों की शराब
जाने कब आँख लगी क्या मालूम
शब ये सो कर भी तो कट  सकती थी
फिर क्यूँ रो रो के कटी क्या मालूम   
थे इतने लोग फिर भी  दौलते ईमान   
क्यूँ  सरे बाज़ार लुटी क्या मालूम

Tuesday 7 February 2012

बहुत कम रोशनी बाक़ी है

बहुत कम रोशनी बाक़ी है इन जलते चराग़ों में
मिलेगा अब तुम्हे भी क्या बुझी शम्मा बुझाने से

मैं एक टूटा हुआ शीशा मेरी क़ीमत ही अब क्या है
तुम्हे तक़लीफ़ ही होगी मेरी बोली लगाने से

तुम्हे झूठे बहानों से है पहले से शनासाई
मेरी बस्ती में भी आओ किसी झूठे बहाने से

इजाज़त है तुम्हे दिल में मेरे नश्तर चुभाने की
अगर मैं भी करूँ ऐसा तो मत कहना ज़माने से

उसे मालूम है राहे वफ़ा में मौत मिलती हैं
क्यूँ  चलता है इन राहों पे ये पूछो एक दीवाने से

 

Monday 6 February 2012

क्यूँ मुझको शराबी नाम दिया

थे पहले से ही ज़ख्म कई , फिर तेरी नज़र ने काम किया
कुछ तो हम भी दीवाने थे, कुछ तुमने भी बदनाम किया

जो पीकर रोज़ बहकते थे , वो रौनक़े महफ़िल बनते रहे
मैंने तो पिये थे अश्क तेरे , क्यूँ मुझको शराबी नाम दिया

बहता हुआ पानी बनकर


तेरे चेहरे पे सुरूर आया जवानी बन कर
सिर्फ रह जायगा एक दिन ये कहानी बन कर

उम्र होती है  घटाओं की बस बरसने तक
वो भी खो जातीं हैं बहता हुआ पानी बनकर


अपने होठों को बनाए रख अभी थोड़ा शीरीं
तुझे भी बिकना है कल चीज़ पुरानी बन कर
कहीं नासूर न बन जाएँ ज़ख्म मेरे माज़ी  के
आ तसव्वुर में मेरे रात की रानी बन कर   


दिल के वीराने में ये शब न उतर जाय कहीं
समा जा सीने में एक शाम सुहानी बन कर

Friday 3 February 2012

दो क़दम तो चलो


ये आग मैंने ही अपने लिए जलाई है
मैं नहीं कहता कि आओ और तुम भी जलो

रोज़ चलता हूँ कई गाँव तुम्हारी ख़ातिर
कमसकम साथ मेरे भी दो क़दम तो चलो 
सहर की धूप  को आने दो इन दरीचों से
यूँ न हो शाम चली जाय तो फिर हाथ मलो
न देखो उसको ये आईना तुम्हे डरायेगा
ढलती है उम्र तो ढलने दो मगर तुम न ढलो   
 

Thursday 2 February 2012

महफ़ूज़ है क़श्ती

मुझे दे दो तुम अपने सारे ग़म
जगह बड़ी  है इस नाज़ुक दिल में

खुशियों में याद तुम करो न करो
देना आवाज़ जब हो मुश्किल  में


बड़ा सुकून है ऐ दोस्त चलते रहने में
नहीं मिलता है जो  कभी  मंज़िल में
 
अब तो साग़र में ही महफ़ूज़  है क़श्ती
दरारें आज इतनी पड़ गयी हैं साहिल में

Wednesday 1 February 2012

नज़र हसीन बना

अपना क़द ऊँचा कर , ये ज़मीं घूमती दिखेगी तुझे
नज़र हसीन बना , सारी दुनियां हसीं लगेगी तुझे

दहशत का नया चेहरा ले के आयी है ये काली रात
तू लड़ अंधेरों से , एक दिन रौशनी मिलेगी तुझे

बड़े ज़ालिम हैं ,तेरे साथ में चलते वहशी साये
न देख मुड़ के  , तेरी परछाईं लूट लेगी तुझे