tag:blogger.com,1999:blog-87156116978430441422023-11-15T05:50:01.814-08:00ChithhiMahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.comBlogger357125tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-42432404989916225802016-06-15T20:46:00.000-07:002016-06-15T20:46:16.625-07:00दोनों मरते हैं सहर होती है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
चराग़ो शब की जंग के आखिर <br />दोनों मरते हैं सहर होती है <br /><br />बेखबर रहता है बेदर्द मेरी आहों से <br />ज़माने भर को गो इसकी खबर होती है <br /><br />हम ग़रीबों के पास है ही क्या <br />दौलते इश्क़ है सब तेरी नज़र होती है <br /><br />न होता ग़म जो मुहब्बत की चुभन <br />उधर भी होती ग़र जितनी इधर होती है </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-48236049220543560962016-02-09T23:00:00.000-08:002016-02-10T18:27:23.378-08:00न रोइए कि सो गया है दिल <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
न रोइए कि सो गया है दिल<br />अश्क़ गिरते हैं शोर होता है<br /><br />वो तेरी आँख से बरसा सावन<br />मेरा दामन यहाँ भिगोता है<br /><br />लाया था क्या जिसे ले जायेगा<br />ये आदमी है फिर भी रोता है<br /><br />प्यार के घर में पीर पलती है<br />जिसको हो जाये वही रोता है <br /><br />लोग आते हैं लौट जाने को <br />यहां सदियों से यही होता है </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-24178517875954623502015-12-03T05:56:00.003-08:002015-12-04T21:30:20.430-08:00तू रहना सबसे पीछे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वक़्त एक पल भी पीछे नहीं जाता है<br />यादें ले जातीं हैं बरसों पीछे<br /><br />वो जाने वाला राहे अदम जानता है<br />यूँ चला जाता है आँखें मीचे <br /><br />जितने दिखते हैं उससे भी ज़्यादा<br />दबे हैं लोग ज़मीं के नीचे<br /><br />ले मैं लाख बरस तेरे नाम करता हूँ<br />तू बचे रहना सबसे पीछे</div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-76218346355432501962015-09-16T04:48:00.000-07:002015-09-16T04:48:03.854-07:00आया करोगे याद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जाएंगी तेरी यादें बस ज़िंदगी के बाद <br />जब तक चलेंगी धड़कनें आया करोगे याद <br /><br />अब जितना दूर कर दें जलते हुए ये दिन <br />आयेंगी सर्द रातें आया करोगे याद <br /><br />घिर आएंगे अँधेरे टूटेगा जब बदन <br />तारों से होंगी बातें आया करोगे याद <br /><br />लो देखो फिर चलीं हैं भीगी हुई हवाएँ <br />भीगेंगी फिर से पलकें आया करोगे याद </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-16414505053369047922015-09-14T18:52:00.002-07:002015-09-14T18:52:34.171-07:00और हम थे तरसते रहे दीदार के लिए <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
इक आईने ने देखा तुमको हज़ार बार <br />और हम थे तरसते रहे दीदार के लिए <br /><br />ना जाने कितनी बातें कीं दुनियाँ से आपने <br />दो बोल प्यार के न थे बीमार के लिए <br /><br />सब उड़ गए परिंदे अब आसमान में <br />क्यों हम भी जी रहे हैं बेकार के लिए <br /><br />अक्सर दिखे हैं आपके इनकार के तेवर <br />खोला भी करिये लब कभी इक़रार के लिए </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-4325082009711886982015-09-03T09:38:00.004-07:002016-09-09T05:20:39.059-07:00नींद आ जाए वो नसीब कहाँ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नींद आ जाए वो नसीब कहाँ <br />
रातें आ आ के जलातीं हैं सौतन की तरह <br />
<br />
बहुत सताया है ज़िंदगी तुमने <br />
जी करे है कि रूंठ जाएँ बचपन की तरह <br />
<br />
दर्द जो हर घड़ी छलकता है <br />
काश कि ये भी बरस जाता सावन की तरह <br />
<br />
निकल गया जो मन के आँगन से<br />
फिर नहीं लौटा गुज़रे हुए जीवन की तरह </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-25051810521122991572015-08-28T06:20:00.002-07:002015-08-28T06:20:57.811-07:00तुम बिना बात क्यूँ नहीं मिलते <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सिर्फ मिलते हो किसी मक़सद से <br /> तुम बिना बात क्यूँ नहीं मिलते <br />
<br />
इतना उजड़ा है अब चमन कि यहां <br /> मौसमी फूल भी नहीं खिलते <br />
<br />
तसल्लियों का खज़ाना तो सभी रखते हैं <br /> ज़ख्म दिखते हुए नहीं सिलते <br />
<br />
वादा उसने किया था कल का हमें <br /> आज भी रह गया मिलते मिलते </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-17333571207964103172015-08-26T20:45:00.000-07:002015-08-26T20:45:03.944-07:00तूने मोहलत न दी संभलने की<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हमको बर्बाद यूँ ही होना था <br /> अपनी फितरत न थी बदलने की <br />
<br />
न गिरते इस तरह हम तेरे दर पे ऐ साक़ी <br /> तूने मोहलत न दी संभलने की<br />
<br />
न कोई ज़िक्रे सुबह और न इंतज़ामे शाम <br /> बात उठ्ठी है रात ढलने की <br />
<br />
रिन्द गिरने लगे हैं अब तेरे मयखाने में <br /> सोचते हम भी हैं निकलने की</div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-200086984079714422015-08-22T08:16:00.000-07:002015-08-22T09:05:42.877-07:00यहाँ दैरो हरम लड़ते हैं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ग़ुलों के साथ कांटे हैं हवाएँ गर्म बहती हैं <br /> न जाने फिर भी क्यूँ हमसे चमन छोड़ा नहीं जाता <br />
<br />
यहाँ दैरो हरम लड़ते हैं अपनी रूह घुटती है <br /> मगर हम हैं कि हमसे ये वतन छोड़ा नहीं जाता <br />
<br />
ऐ याराँ कितने हैं दिलकश नज़ारे और दुनियां में <br /> कहाँ जाएँ कि अब तेरा सहन छोड़ा नहीं जाता <br />
<br />
ज़माना रोज़ कहता है जवाँ अब हो गया है वो <br /> मगर उस बेख़बर से बालपन छोड़ा नहीं जाता </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-12541854141427343802015-07-22T06:31:00.002-07:002015-07-22T06:31:43.013-07:00पूछ लेना तेरा मज़हब क्या है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जब भी जाए इस वतन की हवा साँसों में <br /> पूछ लेना तेरा मज़हब क्या है <br />
गर जो काफ़िर वो निकल जाए कहीं <br /> हो जो हिम्मत उसे लौटा देना </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-63349614850348411002015-07-16T09:24:00.003-07:002015-07-16T09:24:35.143-07:00डर लगता है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बारहा यूँ न आ तसव्वुर में<br /> प्यार हो जाएगा डर लगता है<br />
<br />
सुबह की धूप जैसा चेहरा तेरा <br /> ये सच नहीं है मगर लगता है <br />
<br />
इश्क़ के ज़ख्म तो भर जाते है <br /> दर्द क्यूँ सारी उमर लगता है <br />
<br />
लोग रोते हैं यहां शामो सहर <br /> फिर भी खामोश शहर लगता है </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-62290157834540625852015-02-17T08:48:00.001-08:002015-02-17T08:48:10.380-08:00कौन सा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
किसके लिए रोया था रात पूछती है सबा <br />कौन सा रिश्ता था तुझसे जो बता देता </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-23647794406888309722015-01-12T17:11:00.000-08:002015-01-12T17:11:04.999-08:00दर्द का उन्वान हूँ मैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नग़मा ए दर्द का उन्वान हूँ मैं<br /> वक़्त से जूझता इंसान हूँ मैं <br />
<br />
जिसने देखा उठा के चलता बना <br /> घर से फेंका हुआ सामान हूँ मैं <br />
<br />
ज़िंदा रहने दे मुझे पैकरे हुस्न<br /> मैं इश्क़ हूँ कि तेरी शान हूँ मैं<br />
<br />
मुझको सीने से लगाले हमदम <br /> तेरा साया तेरा ईमान हूँ मैं </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-3515735705752286502014-10-06T06:04:00.002-07:002015-09-18T03:42:08.211-07:00लोग कह कर मरा नहीं करते <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
रोज़ कहते हो कि मर जायेंगे<br />
लोग कह कर मरा नहीं करते <br />
<br />
मैं बुरा हूँ तो रब से मेरे लिए<br />
मौत की क्यूँ दुआ नहीं करते <br />
<br />
आदमी खुद को दफ्न करता है<br />
हादिसे यूँ हुआ नहीं करते<br />
<br />
न भर तू आह, सुलगती है आग <br />
जलते दिल को हवा नहीं करते </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-19669120973539624542014-09-14T07:43:00.002-07:002014-09-14T07:43:53.251-07:00नाम तेरा कब कम हो जाए <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पास है जो भी कब खो जाए <br /> जन्नत कब दोज़ख हो जाए <br />
खुशियाँ सब ओझल हो जाएँ <br /> दर्द भरा आलम हो जाए <br />
खुश्क हवाओं के मौसम में <br /> आँख तेरी कब नम हो जाए <br />
खुद जी और जीने दे सबको <br /> किसे खबर है अगले पल की <br />
ज़िंदा लोगों की सूची में <br /> नाम तेरा कब कम हो जाए </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-74602908681119204532014-09-14T04:53:00.000-07:002014-09-14T18:55:15.521-07:00उत्तर प्रदेश जिला अलीगढ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
उत्तर प्रदेश जिला अलीगढ से चौदह मील दूर है एक क़स्बा खैर । वहीं जन्मा था मैं सन १९४९ मेँ । निम्न मध्य वर्ग से कुछ और कमज़ोर परिवार । जब होश संभाला तब उस समय हम चार भाई और एक बहन मिला कर पांच थे । मैं सबसे छोटा था । जन्म से पहले तीन बड़ी बहनें जीवित नहीं रह सकीं । कुल मिला कर मैं अपनी माँ की आठवीं संतान था । पिता एक इंटर कॉलेज में संस्कृत के अध्यापक थे । आर्थिक हालात इतने कमज़ोर कि मेरे जन्म के समय प्रसव का पूरा कार्य मेरी बड़ी बहन ने अपने हाथों से कराया था । प्रारम्भ में कोई पारम्परिक शिक्षा नहीं मिली । परन्तु सौभाग्यवश गणित के एक प्रश्न से प्रभावित हो कर , पिता जिस स्कूल में पढ़ाते थे उसके प्रिंसिपल श्री किशोरी लाल जी ने मेरा दाखिला सीधे पांचवीं कक्षा में कर दिया । उम्र कोई छह वर्ष कुछ माह रही होगी । गणित के अलावा विषय और भी थे जिन्हे समझनै में प्रारम्भ में बहुत कठिनाई हुई । आगे की कुछ कक्षाओं में गाडी लखड़ाते हुए आगे बड़ी ,पर नवी कक्षा में आते आते बुद्धि विकसित हुई और मेरा अपनी कक्षा में तीसरा स्थान आया । अगले वर्ष यू पी बोर्ड से हाई स्कूल की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण तो हुआ परन्तु बोर्ड में रैंक अच्छी नहीं थी फिर भी १६ रुपये प्रति माह की छात्रवृति मिलने लगी । </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-80700346140344388122014-07-06T19:43:00.000-07:002014-07-06T19:43:13.969-07:00यहाँ बहरे हैँ लोग <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
खामखाँ इनसे बहस मत कीजिये <br />हार जाओगे बहुत गहरें हैँ लोग <br /><br />सुन नहीं सकते प्रलय की चींख क़ो <br />सो गए हैँ या यहाँ बहरे हैँ लोग <br /><br />मर गया है क्या कोई फिर राहज़न <br />चलते चलते क्यों यहां ठहरे हैँ लोग <br /><br />हो चुका सब कुछ नया मत सोचिए <br />एक खड़ी दीवार हैं , पहरे हैँ लोग़ </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-43456231210872454602014-05-17T06:06:00.002-07:002014-05-17T06:06:46.054-07:00तो हम तुम भी वली होते <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">इबादत को समझ पाते <br /> तो हम तुम भी वली होते <br /> <br /> ज़ख्म की टीस गर सहते <br /> तो कांटे भी कली होते <br /> <br /> नास्तिक है भूखा पेट <br /> बस यही सोचता है <br /> ये शजर से टूटते पत्ते<br /> एक रोटी अधजली होते <span class="text_exposed_show"><br /></span></span></div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-33504129410197858932014-04-29T01:11:00.000-07:002014-04-29T01:11:04.873-07:00तो ईश्वर न होता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">किसी दर पे तेरा झुका सर न होता <br /> अगर डर न होता तो ईश्वर न होता <br /> <br /> अगर मंज़िलें अपने हाथो में होतीं <br /> तो दुनिया में कोई मुसाफिर न होता <br /> <br /> तुझे ज़ुल्म सहने की आदत न होती <br /> तो ज़ालिम कभी तेरा रहबर न होता <br /> <br /> अगर आसमानों से कुछ रिश्ते बनाता <span class="text_exposed_show"><br /> तो गिरने को बिजली तेरा घर न होता </span></span><br /></div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-22458878451395453392014-04-02T10:16:00.002-07:002014-04-02T10:16:44.595-07:00 लोग जला देते हैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
बदनसीब है बदन चरागों की तरह <br />बुझने लगता है तो लोग जला देते हैं<br /><br /><br />कौन जलते ज़ख्मों पे रक्खे मरहम <br />जो हैं पहचान वाले बढ़ के हवा देते हैं </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-67875250874457296522014-03-07T22:39:00.002-08:002014-03-08T08:04:33.351-08:00जिनकी तालीम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जिनकी तालीम उठाती है इंसानी क़द<br />
ऐसे इंसान ज़माने को गिरे लगते हैं<br />
<br />
जिनके साये ने रोकी है सूरज की तपिश<br />
धूप ढल जाय तो वे लोग बुरे लगते हैं <br />
<br />
कभी एक तरफ से नहीं जुड़ते रिश्ते<br />
जोड़ बनने में दोनों ही सिरे लगते हैं<br />
<br />
इतने गहरे हैं कुछ ज़ख्म तेरी यादों के <br />
बरस बीत गए फिर भी हरे लगते हैं </div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-75714507974364283032014-02-16T04:48:00.003-08:002014-02-16T05:02:56.864-08:00मैं उतना भी बुरा नहीं हूँ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">मैं एक शजर हूँ तेरे चमन का <br /> और ये भी सच है हरा नहीं हूँ <br /> <br /> थका हूँ लड़ लड़ कर आँधियों से <br /> खड़ा हूँ अब भी गिरा नहीं हूँ <br /> <br /> समझ रहें हैं ज़माने वाले <br /> मैं उतना भी बुरा नहीं हूँ <br /> <br /> न कोसना तुम मेरी बेखुदी को <span class="text_exposed_show"><br /> आँख लगी है मरा नहीं हूँ </span></span></div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-58348187634515309512014-01-16T06:31:00.003-08:002014-01-16T06:31:51.302-08:00तुम्हारे साथ नज़र आउंगा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">मैंने तो खुद नहीं देखे सपने <br /> फिर भला तुमको क्या दिखाऊंगा <br /> करोगे जब भी कुछ वतन के लिए <br /> तुम्हारे साथ नज़र आउंगा <br /> <br /> कौन बच पाया है इस दुनिया में <br /> दोनों मरते हैं मक़तूल भी क़ातिल भी <br /> करोगे जब भी कुछ अमन के लिए <br /> तुम्हारे साथ नज़र आउंगा <br /> <span class="text_exposed_show"><br /> खिलते इन फूलों का मज़हब है क्या <br /> देती है नूर इनको बहती हवा <br /> करोगे जब भी कुछ चमन के लिए <br /> तुम्हारे साथ नज़र आउंगा <br /> </span></span></div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-81076510619326656642014-01-14T05:58:00.001-08:002014-01-14T05:58:27.215-08:00फिर उन्ही राहों पे मुड़ना होगा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">वक़्त कहता है कि उड़ना होगा<br /> मिले थे तुमसे, बिछुड़ना होगा <br /> <br /> बहुत सताएगी तन्हाई हमें <br /> तुम्हारी यादों से जुड़ना होगा<br /> <br /> दूर तक कोई भी हमदम न मिले <br /> फिर उन्ही राहों पे मुड़ना होगा <br /> <br /> भूल बैठे थे जो क़द झूमती हवाओं में <br /> उन्ही पंखों को सिकुड़ना होगा <br /> </span></div>
Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8715611697843044142.post-5844096063691347752013-12-23T20:37:00.003-08:002013-12-23T20:37:21.469-08:00मैं विश्वविद्यालय को वर्गों में नहीं आंकता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="_1x1">
<div class="userContentWrapper">
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<div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_52b90e8ca63435819181237">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">सभी विद्यार्थियों , अध्यापक तथा समाज के और लोगों के विचार सुनने के बाद मैं अपना आकलन बताना चाहूंगा । मैं ग़लत भी हो सकता हूँ । <br />
" मैं विश्वविद्यालय को वर्गों में नहीं आंकता । विद्यार्थी अच्छे भी होते
हैं , बुरे भी होते हैं ,अध्यापक अच्छे भी होते हैं , बुरे भी होते हैं।
जे के इंस्टिट्यूट में जो हुआ वह बहुत दुखद है । विश्वविद्यालय प्रशासन ने
विद्यार्थियों के प्रदर्शन के बावजूद इसकी गभीरता को नहीं स<span class="text_exposed_show">मझा
या समझ कर नहीं समझा । उपकुलपति महोदय , जिन्होंने अपनी वीर गाथाएं सुना
सुना कर हमारे कान पका दिए , अध्यापक और विद्यार्थी को अछूत समझते हैं ।
अध्यापक संघ की मीटिंग में आना उन्हें गवारा नहीं । दस विद्यार्थियों से
वार्तालाप नहीं कर सकते हैं । एक अध्यापक जो विज्ञान के नाम पर कोढ़ है पर
जिसका यू जी सी और डी एस टी में ज़ोर है उसकी परिस्थिति सम्भालने के लिए वे
बिना आमंत्रण के भी विभाग में आ सकते हैं । ईश्वर जाने इस विश्वविद्यालय
का क्या होगा और यह वक्तव्य देने के बाद मेरे साथ क्या होगा ,नहीं मालूम ।<br /> <br /> दुष्यंत की पंक्तियाँ याद आतीं हैं <br /> " हम बहुत कुछ सोचतें हैं पर कभी कहते नहीं"</span></span></div>
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Mahesh Chandrahttp://www.blogger.com/profile/15467516760516070285noreply@blogger.com0