Tuesday 7 February 2012

बहुत कम रोशनी बाक़ी है

बहुत कम रोशनी बाक़ी है इन जलते चराग़ों में
मिलेगा अब तुम्हे भी क्या बुझी शम्मा बुझाने से

मैं एक टूटा हुआ शीशा मेरी क़ीमत ही अब क्या है
तुम्हे तक़लीफ़ ही होगी मेरी बोली लगाने से

तुम्हे झूठे बहानों से है पहले से शनासाई
मेरी बस्ती में भी आओ किसी झूठे बहाने से

इजाज़त है तुम्हे दिल में मेरे नश्तर चुभाने की
अगर मैं भी करूँ ऐसा तो मत कहना ज़माने से

उसे मालूम है राहे वफ़ा में मौत मिलती हैं
क्यूँ  चलता है इन राहों पे ये पूछो एक दीवाने से

 

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