Saturday 26 October 2013
Sunday 20 October 2013
पाखी रे पंख दे
पाखी रे पंख दे ..........थोड़ी उमंग दे
कहता है मेरा मन , जाना है तेरे गाँव
थोडा सा प्यार दे ....... ऐसा संसार दे
चलूँ मैं जितना भी थकें नहीं मेरे पाँव
धूप में सह लूँगा ......सूरज से लड़ लूँगा
मिल जाए गर तेरी फ़ैली पलकों की छाँव
कहता है मेरा मन , जाना है तेरे गाँव
थोडा सा प्यार दे ....... ऐसा संसार दे
चलूँ मैं जितना भी थकें नहीं मेरे पाँव
धूप में सह लूँगा ......सूरज से लड़ लूँगा
मिल जाए गर तेरी फ़ैली पलकों की छाँव
Monday 7 October 2013
सैय्याद ही बदला है
वही मकतूल वही खंजर वही हैं हादिसे
गर जो बदला है तो सैय्याद ही बदला है
ग़ज़ब की भीड़ और एक भी क़तार नहीं
छिडी है जंग यहाँ कौन किससे पहला है
कैसे धुल जाते हैं दामन पे लगे खून के दाग
क़त्ल करते है रोज़ पर लिबास उजला है
भूख तुमको लगी है कहते हैं कुर्सी वाले
तुम्ही निबटाओ इसे ये तुम्हारा मसला है
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