ग़ुलों के साथ कांटे हैं हवाएँ गर्म बहती हैं
न जाने फिर भी क्यूँ हमसे चमन छोड़ा नहीं जाता
यहाँ दैरो हरम लड़ते हैं अपनी रूह घुटती है
मगर हम हैं कि हमसे ये वतन छोड़ा नहीं जाता
ऐ याराँ कितने हैं दिलकश नज़ारे और दुनियां में
कहाँ जाएँ कि अब तेरा सहन छोड़ा नहीं जाता
ज़माना रोज़ कहता है जवाँ अब हो गया है वो
मगर उस बेख़बर से बालपन छोड़ा नहीं जाता
न जाने फिर भी क्यूँ हमसे चमन छोड़ा नहीं जाता
यहाँ दैरो हरम लड़ते हैं अपनी रूह घुटती है
मगर हम हैं कि हमसे ये वतन छोड़ा नहीं जाता
ऐ याराँ कितने हैं दिलकश नज़ारे और दुनियां में
कहाँ जाएँ कि अब तेरा सहन छोड़ा नहीं जाता
ज़माना रोज़ कहता है जवाँ अब हो गया है वो
मगर उस बेख़बर से बालपन छोड़ा नहीं जाता
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