Sunday 3 July 2011

तेरी उंचाइयां ए आसमां


किस तरह पाऊं तेरी उंचाइयां ए आसमां
पंख मेरे गिर चुके हैं ,तू भी कितना दूर है
क्यूँ भला  मानेंगे मेरी  बात ये अहले जहाँ
उतना ही गुमनाम मैं, जितना कि तू मशहूर है
ढूंढता है तू सितार्रों में जो अपना आशियाँ
इस ज़मीं पर देख कितना आदमी मजबूर है
अजनबी ये महफ़िलें और  लोग ये नाआशना
तू नहीं तो ये सफ़र अब किस क़दर  बेनूर है
 मेरी हर एक सांस है तेरी हवाओं पे निसार 
तेरी ख़ातिर ऐ वतन  मरना मुझे मंज़ूर है

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