Thursday 7 July 2011

पर मकां भी इतना न दूर हो

न राहें अपनी बदल सके ,न दिल के क़रीब ही आ सके
पर ये भी सच है कि उम्र भर, तुझे भूलकर न भुला सके

वो थकन , अधूरी सी हसरतें ,मेरे अश्क बन के बरस गयीं
सारे हर्फ़ लब पे ही रुक गए ग़म ऐ दिल उन्हें न सुना सके

तू जहाँ कहे मैं वहां रहूँ, पर मकां भी इतना न दूर हो
मैं किसी के दर पे न जा सकूँ,कोई मुझको घर न बुला सके
जाने कितनी आई है मंजिलें ,मेरी रातों की नींदें उड़ा गयीं
कोई ऐसी भी तो जगह बता , मुझे चैन से जो सुला सके

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