Friday 5 August 2011

कैसा है ये प्यार का अंदाज़

आँख से ओझल है जब परवाज़
क्यूँ भला अब दे रहे आवाज़

सर्द साँसों में सहम कर सो गए
मेरी उस दीवानगी के राज़

एक बस मैं ही सहूँ सारे सितम
कैसा है ये प्यार का अंदाज़
रात रोई है बनी  है तब ये शबनम
कितना भीगा सहर का आग़ाज़
तोड़ कर ले जायगा  कल बागवाँ
जिन गुलों पर है चमन को नाज़

हैं सितमगर आज सब गद्दीनशीन
आदमी जीने को है मोहताज

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