Monday 8 August 2011

कई पैबंद हैं सिलने

कई चेहरे मिले हमसे ,तो क्या हासिल किया दिल ने
तमन्ना जिसकी हमने की , वही आया नहीं मिलने

जिन्हें हम रूह का हिस्सा समझ बैठे थे वो ही गुल
सुना है ग़ैर के गुलशन में , अब जाकर लगे खिलने

सितारों से जड़ी पोशाक को देखा जो हसरत से
तो याद आया कमीज़ों में कई पैबंद हैं  सिलने

मेरी बेबस सी फरियादें , 
तेरा इनक़ार कर देना
ये ही तोहफ़े दिए हैं सिर्फ हमको तेरी  महफ़िल ने

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