Sunday 28 August 2011

दिल में मेरे अक़ीदत है

ये सच है  मैं मरता हूँ अपने मज़हब पर
राज़ की बात है मज़हब मेरा मोहब्बत है

तेरा जमाल है या मेरी निगाहों का फ़रेब
जिधर भी देखूं नज़र आये तेरी सूरत है

ख़ुद ब ख़ुद झुक ही  जाती है गर्दन मेरी
तेरा चेहरा जैसे कोई  मज़ारे उलफ़त है

है एक फ़र्क़  मुझमें और अहले दुनियां में
वो देखते हैं चेहरा , दिल में मेरे अक़ीदत है 
 

No comments:

Post a Comment