Saturday 10 March 2012

जलन बढती जाती है


उसी गुलाब में कांटे भी छिपे बैठे हैं
जिस की खुशबू तुझे मदहोश किये जाती है

लोग जो हँसते हुए दिखते हैं इस बस्ती में
उनकी रूहों से सिसकने की सदा आती है
...
हम भी देखेंगे इस बरस ये सावन की हवा
लूटती है हमें या मोतियाँ बरसाती है

ढूंढ के लाओ कोई फिर से नया चारागर
मर्ज़ जाता नहीं है बस दवा बहलाती है

क्या कहें हम तेरी आँखों की शराब
जितना पीते हैं उतनी प्यास बढ़ती जाती है

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