Thursday 29 March 2012

सैय्यादों की सूरत

निकल के क़ैद से  बैठा है मायूस परिंदा
उड़ने का सलीका  उसे अब याद नहीं है

तू खुश है देख कर के  दरवाज़े की रौनक
अंदर के अंधेरों का  तुझे अंदाज़ नहीं है

सरहद से आ रहा है गोलियों का शोर
तेरे किसी हमदर्द की आवाज़ नहीं है
आई है नये रंग  में  सैय्यादों की सूरत
जो कल थी तेरे सामने वो आज नहीं है

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