वो मेरे हक़ में फैसला देगा, कल तलक मैं इसी उम्मीद में था
उसने मुझको तभी मारा खंज़र, जब मैं सोया था गहरी नींद में था
चलो ऐसा है तो ऐसा ही सही ,तू फ़रिश्ता है गुनहगार हूँ मैं
तेरे भी चैन में ख़लल तो पड़े,आज मरने को भी तैयार हूँ मैं
कैसी तक़दीर लिखा लाये हम , हुई सहर तो खा लिया उजालों ने
पहले ग़ैरों ने चमन को लूटा, बाद में लूटा चमन वालों ने
No comments:
Post a Comment