Saturday 11 June 2011

वही वतन की हवा मांगती है तुझसे हिसाब


असल जो लूट थी वो बंट गयी है यारों में
बची झूठन को अब बांटेंगे वो क़तारों में

मेरे चेहरे में जो ढूंढे हैं तूने चंद दाग़
तेरी फ़ितरत में वो होंगे कई हज़ारों में

जहाँ रहो उसे लूटो और फिर चलते बनो
मैंने माना ये होता है फिरंगी का मिजाज़

जिसकी खुशबू से धड़कता है तेरे सीने में दिल
वही वतन की हवा मांगती है तुझसे हिसाब



जिंदा रहने का है बस हक़ रसूक़ वालों को
हर एक मोहसिन के हिस्से अब आएगी सलीब

कितना नायाब है अंदाज़े सियासत देखो
चैन से जियो क़त्ल कर के तुम अपना रक़ीब

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