Tuesday 28 June 2011

न यूँ इठला के चल नदिया

तू इन लहरों के यौवन पर , न यूँ इठला के चल नदिया
ये हम भी जानते हैं, तू बहुत है तेज और गहरी

थोडा तो मान रख उनका ,जो पत्थर हैं किनारे के
तेरे अस्तित्व के रक्षक ,तेरे व्यक्तित्व के प्रहरी

अगर वे हट गए पथ से ,बिखर जाना तेरा तय है
तलैया ताल बन कर के, कहीं रह जायगी ठहरी

ये जीवन है ,यहाँ एक पल में ही आलम बदलता है 

सुबह है , शाम भी होगी, नहीं हर लमहा  दोपहरी 

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