Monday 13 June 2011

शमा मासूम है कितनी

जो तेरे सामने होने से कुछ तबियत संभलती है 
तेरा दीदार दिलकश है ,तो क्या ये मेरी ग़लती है ? 


ये दुनियां है यहाँ हर रोज़ ही, सब कुछ बदलता है
कोई सो जाता है थक कर ,किसी की आँख खुलती है


सफ़र की दूरियों का फ़र्क़ है, बस तुझ में और मुझ में
जब तेरा दिन निकलता है ,तो मेरी शाम ढलती है



तू कुछ तो क़द्र कर उसकी ,शमा मासूम है कितनी
रहे बस घर तेरा रोशन , वो सारी रात जलती है

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