Monday 3 December 2012

मेरे ज़ख्म कहाँ है


मिला है दर्द जहां से वो मेरे अपने थे
गैरों को क्या पता था  मेरे ज़ख्म कहाँ है


कल रात इस बस्ती में जलाए गए थे लोग
जो खाली दिख रहे हैं वो सब उनके मकां हैं 



नुमाइश नहीं लगी है सितारों की बदन पे
मेरे सीने पे चमकते तेरे तीरों के निशां हैं  



महफ़िल में मेरा हँसना एक मेरी बेबसी है
रोने के कितने हादिसे इस  दिल में निहां हैं  



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