Sunday 16 December 2012

म्योर के वे दिन ......(5)


म्योर के वे दिन ......(5)

लाइब्रेरी वाला भूत :

जिस समय की बात मैं कर रहा हूँ उस समय इलाहाबाद में तो दिन भी बहुत शांत हुआ करते थे , फिर रातों का तो क्या कहना । कला संकाय में तो रात को ज़बरदस्त खामोशी छा जाती थी । अन्दर घूमने का मन करता था पर चौकीदार जाने नहीं देते थे, बहुत रोक टोक करते थे । एक रात इरादा बना कि अन्दर घूमना ज़रूर है । करीब छह लोग थे हम | लक्कू बौस , रहमत , मैं तथा तीन और । प्लान बन गया ,, सफ़ेद चादरें इकठ्ठी की गयीं । एक घड़े का मुंह तोड़ कर चौड़ा किया गया , दो आँखों के जैसे छेद किये गए , उन पर लाल पन्नी चिपकाई गयी । हम लोगों ने सफ़ेद चादरों से बदन को पूरी तरह ढक लिया , सबसे आगे लक्कू बौस ने घड़ा मुह पर पहन लिया और अन्दर से टार्च जला ली । रात के लगभग 1 बजे कला संकाय में प्रवेश किया । अजीब तिलस्मी दृश्य था , सबसे आगे लाल आँखों वाले लक्कू बौस और पीछे पांच सफ़ेद साए ,बिना आवाज़ किये पीछे चले जा रहें थे । एक चौकीदार ने पहेले तो ज़ोर से कहा " कौन है ?", पर माहौल देख कर एक दम सन्नाटा खींच गया , और छिटक कर 20 गज की दूरी बना ली , आगे दूसरा मिला उसका भी लगभग वही हाल हुआ । एक कुछ ज्यादा घबड़ा गया , ज़ोर से चिल्लाया " अरे कड़ेदीन ,, मुखिया ...भरोसे ...जल्दी आवा हो , ऊ लायबरेली (Library) वाला भूत आवा है , पूरा खानदान लय के "। अब कई इकट्ठे हो गए , परन्तु किसी की भी हिम्मत हमारे पास आने की नहीं हो रही थी । ठीक से दूरी बना कर हमारा पीछा करने लगे । लक्कू बौस अचानक 90 डिग्री के कोण पर मुड़ जाते , और वे लोग सहम जाते । तभी दुर्भाग्य से रहमत का पैर एक पत्थर से टकरा गया , उसे लगा कि मैंने टंगड़ी मारी है , तुरंत बोल पड़ा " अबे एम सी , बदमाशी मत करो "। चौकीदारों के लिए ये बहुत बड़ा इशारा था , एक चिल्ला कर बोला " हम पहले ही समझ गए रहिन , ई सब सार लरिका लोग हैं , मारा सारन का .."। सुनते ही हम सभी लोगों में जंगली हिरन वाली ऊर्जा आ गयी । मैं ज़िंदगी में इससे तेज कभी नहीं दौड़ा , पलक झपकते ही मोती लाल नेहरु रोड  वाली चहार दीवारी पार कर गया । रहमत हडबडी में उस पार ऐसा टपका जैसे पेड़ से पका आम , अलबत्ता आम की तरह फटा नहीं । हाँ हफ्ता भर लंगड़ा कर ज़रूर चला ।

इसमें लक्कू और रहमत काल्पनिक नाम हैं , पर पात्र असली हैं । लक्कू बाद में आई पी एस तथा रहमत प्रॉपर आई ए एस बने । अभी भी रहमत मियाँ का फोन आता है " अबे एम सी यार उस दिन टांग मार कर बहुत बुरा फसा दिया था तुमने "। मैं कह कह कर थक चुका कि यार उस दिन लात मैंने नहीं मुक़द्दर ने मारी थी ।

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