Friday, 30 December 2011

ग़लती मेरी नज़र की थी

आएगा नया साल तो जाएगा गया साल
फिर उठ के खड़े होंगे कुछ और नए सवाल

या उम्र  बढ़ेगी    या  घटेंगे  ज़िंदगी के दिन
अब जाने किस इरादे से आएगा  नया साल
   
तू  मेरे लिए रूक न सका  सिर्फ दो घड़ी
तब दिल में क्यूँ रुका है अब भी तेरा ख़याल

आँखों में आ के बस गयी है क्यूँ तेरी तस्वीर
ग़लती मेरी नज़र की  थी या था तेरा जमाल

शमा बुझती है




तेरे बुलाने पे आये थे तेरी बज़्म में हम
नहीं पसंद तुझे ग़र तो चलो चलते हैं

नहीं बजता है हर घड़ी  यहाँ  राग बहार
वक़्त के साथ ज़माने के सुर बदलते हैं

बंदिशें इतनी हैं दुनियाँ की फिर भी
राहे उल्फत
में  अरमान क्यूँ मचलते है



फितरतें हैं छिपीं शब के इन अंधेरों में
शमा बुझती है  बेशुमार  बदन  जलते  हैं



Monday, 26 December 2011

ज़िंदा है प्यार

अभी कल ही तो यहाँ आया था चमन पे शबाब
कैसा तारी था हर एक कली पे निखार

वक्ते रूखसत  है तो ख़ुद देख अपनी आँखों से
पत्ते पत्ते सी किस तरहा बिखरी है बहार

ये तेरा हुस्न भी एक दिन तो  बिखर जाएगा
रूह बेदाग़  बना  तू अपनी ज़ुल्फें न संवार

हर एक शम्मा अपनी उम्र ले के आती  है 
बदन तो रोज़ यहाँ  मरते   हैं ज़िंदा है प्यार

सच को पानी में छुपाता क्या है

सच को पानी में छुपाता क्या है
उसका रंग और निखर आएगा

अभी तो दिन है ,चेहरे पहचान
वरना फिर रात में पछतायेगा

तेरी ज़ुल्फों का ये रंगे ख़िज़ाब
ओस की बूंद में घुल जाएगा

मैं तो लुटता रहा हूँ सदियों से
तू मुझे लूट के क्या पायेगा

Sunday, 25 December 2011

आयेगी कब बहार

होता  है शर्मसार क्यूँ ग़र  प्यार किया है
चलता है ज़माना भी इसी प्यार के दम से

मुड़ के न देख पीछे बहुत दूर है मंज़िल   
तय  होगा फासला न  तेरे चार क़दम से

उजड़े हुए चमन  में आयेगी कब बहार
आ कर के पूछती है सबा  रोज़ ये हमसे

थे लोग बहुत फिर क्यूँ नज़र तुझ पे जा रुकी
शायद  है कोई रिश्ता मेरा पिछले जनम से 

Saturday, 24 December 2011

बहकते हैं क़दम



नहीं मिलती हैं मंजिलें अक्सर
उलझी राहों में बहकते हैं क़दम

दिन है तो साथ हैं हज़ारों का
डूबती शाम  कितने तनहा हम

मुझको बस इतनी इजाज़त दे दे
तेरे ज़ख्मों पे रख सकूँ मरहम

साथ बस कुछ  ही  दौलतें हैं मेरी
एक तेरा ग़म और ज़माने के सितम

हमने देखी है  यारब तेरी दरियादिली
ज़िन्दगी दी भी तो वो इतनी कम  



Friday, 23 December 2011

तू मेरे साथ चले न चले


हमें तो बंदगी की आदत है
तेरी मर्ज़ी सलाम ले या न ले

मेरा चलना बहुत ज़रूरी है
तू  मेरे साथ  चले न चले

हँसता चेहरा लगा के जीते हैं
जिनके सीने में कई दर्द पले

टूटे शीशों से हाथ कटते हैं
क्यूँ भला उनका ख़रीदार मिले


ये काली रात बहुत लम्बी है
कोई चराग़  कितनी देर जले

Wednesday, 21 December 2011

शब बहुत अँधेरी थी


यूँ समझिये कि ख़ुदकुशी कर ली
कटे थे पंख हवाओं से दोस्ती कर ली

न थे चराग़ और शब बहुत अँधेरी थी
दिल जलाकर के रोशनी  कर ली

इस तरफ आते हैं वो लौट कर नहीं जाते
ये है बदनाम मोहब्बत की गली

उतर के आयी तेरे गेसुओं से सांवली शाम
लजाती धूप पी के घर को चली


Wednesday, 7 December 2011

दे अब्र या ज़हर दे

तेरे दर को चूम लेंगे , मालिक ऐ दो जहाँ
भूखों का पेट भर दे , रहने को एक घर दे

कितनों के लिए सिर्फ एक छत है आसमान
उघड़े हुए बदन को एक छोटी सी चादर दे

घर की कुआरी बेटी के हाथ पीले कर दे
माँ बहन की कलाई , हरी चूड़ियों से भर दे

बस इतना मांगते हैं , अहले चमन ये तुझसे
इतने दिए हैं कांटे , कुछ गुल भी तो इधर दे

सागर ने रूह कर दी है, अब तेरे हवाले
मर्ज़ी है तेरी बादल , दे अब्र या ज़हर दे
 

Thursday, 1 December 2011

वो रात ज़लज़ले की

अब  जिल्द चढ़ चुकी है  क़िताबे ज़िंदगी पे
हम पीछे देखते हैं पन्ने पलट पलट के
दरिया ने कहाँ रोका था मिलने के रास्तों को
क्यूँ मिल न सके हम तुम जब दोनों एक तरफ़ थे

तुम मुझ पे लगाते हो तोहमत क्यूँ सरे महफ़िल
क्या मैं ही सब ग़लत था या तुम भी कुछ ग़लत थे

थी इंतिहा ऐ उल्फ़त वो रात ज़लज़ले की
सब लोग मर चुके हैं हम इससे बेख़बर थे 
मत छेड़ अब तू मुझसे  मेरी दास्ताने माज़ी
आ आ के सतायेंगे वो क़िस्से उम्र भर के
थोड़ी सी और मोहलत यारब मुझे भी दे दे   
करते हैं प्यार मुझसे कुछ लोग इस शहर के