Wednesday 7 December 2011

दे अब्र या ज़हर दे

तेरे दर को चूम लेंगे , मालिक ऐ दो जहाँ
भूखों का पेट भर दे , रहने को एक घर दे

कितनों के लिए सिर्फ एक छत है आसमान
उघड़े हुए बदन को एक छोटी सी चादर दे

घर की कुआरी बेटी के हाथ पीले कर दे
माँ बहन की कलाई , हरी चूड़ियों से भर दे

बस इतना मांगते हैं , अहले चमन ये तुझसे
इतने दिए हैं कांटे , कुछ गुल भी तो इधर दे

सागर ने रूह कर दी है, अब तेरे हवाले
मर्ज़ी है तेरी बादल , दे अब्र या ज़हर दे
 

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