Friday 23 December 2011

तू मेरे साथ चले न चले


हमें तो बंदगी की आदत है
तेरी मर्ज़ी सलाम ले या न ले

मेरा चलना बहुत ज़रूरी है
तू  मेरे साथ  चले न चले

हँसता चेहरा लगा के जीते हैं
जिनके सीने में कई दर्द पले

टूटे शीशों से हाथ कटते हैं
क्यूँ भला उनका ख़रीदार मिले


ये काली रात बहुत लम्बी है
कोई चराग़  कितनी देर जले

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