Friday, 30 November 2012

कोई ख्वाब न देख

मुझसे  मिलना है  मेरी रूह से मिल
मेरे बदन में लिपटा हुआ लिबास न देख

ठीक से जान ले दरिया ये कितना गहरा है
आती जाती हुई लहरों का हिसाब न देख

रक्स करती हुई परियों की  कहानी तो नहीं
 ज़िंदगी  एक हकीकत है  कोई ख्वाब न देख

शर्म से दोहरा हुआ जाता है तेरा महबूब
भरी महफ़िल में  यूँ उसे  बेहिसाब न देख  

Thursday, 29 November 2012

वो आंयें न आयें

बेहतर है दरिया को अपना बना लो
किनारों का क्या जाने कब टूट जाएँ

खुद अपने ही बाजू से दुनिया संभालो
सहारों का क्या जाने कब छूट जायें

तनहा भी जीने की आदत तो डालो
अपनों का क्या जाने कब रूठ जाएँ

मेरे दोस्तों मेरी मैय्यत उठालो
क्या उनका भरोसा वो आंयें न आयें

छलकते हुए पैमाने

हर होठ चाहता है छलकते हुए पैमाने
क्या मोल हैं जहां में एक खाली सुराही का

रोने पे बंदिशें हैं सब कुछ कहो ज़ुबां से
अब ये सिला मिला है अश्क़ों की गवाही का

जो आज हो गया है ऐसा ही तो होना था
एहसास था पहले से मुझे अपनी तबाही का

मेरी नज़र बुरी है सब लोग ये कहते हैं
तोहफा दिया जहां ने ये पाक निगाही का

सूरत बदल नहीं सकता

अपने दिल में उतार सकता है
शीशा सूरत बदल नहीं सकता

वक़्त को हमने आजमाया है
मेरी किस्मत बदल नहीं सकता

न भर शराब अब मेरे पैमाने में
इतनी पी है संभल नहीं सकता

नहीं है खूँ जो निकल जाएगा
ग़म है पत्थर निकल नहीं सकता

Wednesday, 28 November 2012

पूरे असर के बाद

क्या बताएं तुम्हे इस पल कि कैसा है समंदर
सूरत बदलती जाती है हर एक लहर के बाद

चढी है धूप गुलों से लग लो गले जी भर के
सिर्फ साये ही मिलेंगे तुम्हे दोपहर के बाद


दो चार लमहे गुज़रे  हैं  पी कर न कर गुरूर
लाती  है रंग अपना मय पूरे असर के बाद

कुछ इस क़दर मसरूफ हुआ है ये आदमी
मिलता है ढले शाम ही अब तो सहर के बाद

आइना ही बिखर गया

तेरी एक तस्वीर दिखा कर मुझको
खुद आइना ही बिखर गया

वादा करता रहा जो  रात भर मुझसे
सुबह ज़िंदगी से मुकर गया

मैं भी पागल  हूँ  पूछता हूँ तूफां से
मेरा आशियाँ था किधर गया

बरसों तुझे नज़रों में क़ैद रख कर मैं
क्यूँ तेरी नज़र से उतर गया

Tuesday, 27 November 2012

संवरना न आया


खड़े रह गए यूँ ही दरिया किनारे
नादाँ थे हम पार करना न आया

झुकी उन निगाहों के भीगे इशारे
एक हम थे हमें प्यार करना न आया

संवर कर वो आये तसव्वुर में मेरे
क्यूँ मेरी नज़र को संवरना न आया

खुली चांदनी थी और इठलाती लहरें

हमें झील में ही उतरना न आया

चमन में खिले थे गुलाबों के गुंचे 
मेरे रूप को तब निखरना न आया

बहकती हवाओं ने शाखें हिलाईं
हमें वादियों में बिखरना न आया

Monday, 26 November 2012

वो हर बार सही था

मैंने किया था प्यार मेरा प्यार सही था
तुमने किया इनकार वो इनकार सही था

क़िस्मत ने ही दिए हैं मुक़दमों के फैसले
वो ठीक कह रहा था वो हर बार सही था

तुम जानते थे कैसे होती है तिजारत
मैंने जो जान दी थी व्यापार नहीं था

जिसका इलाज होता रहा कई रोज़ तक
वो भूख से मरा था बीमार नहीं था

Sunday, 25 November 2012

मेरा शुमार होता है

कहाँ कैसे और किससे प्यार होता है
जब भी होता है बे इख्तियार होता है

उंचा सर रख के भी जी सकते हो
बिकने को यूँ तो सारा बज़ार होता है

जो तैरना आये तो कुछ नहीं हासिल
हौसला होता है तो दरिया पार होता है

बरसों हुए मैं भूल चुका हूँ फिर भी
तेरे दीवानों में मेरा शुमार होता है

Saturday, 24 November 2012

मुझे बख्श दे ऐ ज़माने

मैं तंग आ गया हूँ अब तेरी दुश्मनी से
मुझे बख्श दे ऐ ज़माने

जितने थे सीधे आकर जिगर पर लगे
कितने सच्चे थे तेरे निशाने

मैं कुछ चाहता हूँ वो कुछ सोचता है
रब की मर्ज़ी तो कोई न जाने

कोशिशें कर रहा था तुझे भूल जाऊं
तू याद आ गया इस बहाने
 

Thursday, 22 November 2012

कुछ तुमने भी बदनाम किया

थे पहले से भी ज़ख्म कई फिर तेरी नज़र ने काम किया
कुछ तो हम भी दीवाने  थे कुछ तुमने भी बदनाम किया

वो वस्ल के मंज़र देखे थे बस घर की ही दीवारों ने
मैंने तो लब सी रक्खे थे तुमने ही ये चर्चा आम किया

जो पी कर रोज़ बहकते थे वो रौनके महफ़िल बनते रहे
मैंने तो पिए थे अश्क तेरे क्यूँ मुझको शराबी नाम दिया

छलक जाया करो


तेरा चेहरा  है जामे मय की तरह
कभी हम पर भी छलक जाया करो

 बहुत  अँधेरा है मेरे आँगन में
हो चांदनी  तो चले  आया करो

हमें मंज़ूर है रो लेना  तेरे शानों पे
दूर रह कर न यूँ  रुलाया करो

अब निकलना है तेरी महफ़िल से
वक़्ते रुख़सत   न आज़माया करो

तेरा चेहरा  है जामे मय की तरह
कभी हम पर भी छलक जाया करो

 बहुत  अँधेरा है मेरे आँगन में
हो चांदनी  तो चले  आया करो

हमें मंज़ूर है रो लेना  तेरे शानों पे
दूर रह कर न यूँ  रुलाया करो

अब निकलना है तेरी महफ़िल से
वक़्ते रुख़सत   न आज़माया करो

उदासियों से जो घिर जाए दिल
हम दीवानों की गली आया करो 

Monday, 19 November 2012

डर गया हूँ मैं

मेरे दरवाजे पे लोगों का हुजूम
है इतनी भीड़  डर गया हूँ मैं

दुश्मन भी कर रहे हैं  तारीफ़
ऐसा लगता है  मर गयां हूँ मैं

बदन जितनी ज़मीन मेरी  है 
सो सकूँगा  जिधर गया हूँ मैं 

न मना ग़म मैं एक लमहा था
झपकी पलकें गुज़र गया हूँ मैं  

उनमें एक रूह थी शामिल

मैं बड़े शौक़ से इस दर से चला जाऊंगा
था तेरे पास मेरा दिल मुझे वापस दे दे

जो बिताए थे रो रो के तसव्वुर में तेरे
जवान उम्र के वो दिन मुझे वापस दे दे


आज डूबा हूँ तो समझा हूँ कि साग़र क्या है
मेरी क़श्ती मेरा साहिल मुझे वापस दे दे

तेरी चूनर में बंधे रहते थे जितने सामान

उनमें एक रूह थी शामिल मुझे वापस दे दे

Thursday, 15 November 2012

जिंदा रहूँगा मैं

कोयला नहीं हूँ कि राख हो जाऊँगा
पैदाइशी मशाल हूँ जलता रहूँगा मैं

मैंने तेरे दिल में जगह बना ली है
बाद मरने के भी जिंदा रहूँगा मैं

Monday, 12 November 2012

कोई ईश्वर तो मिले

थाल दीपों का सज गया लेकिन 
किसे पूजें कोई ईश्वर तो मिले

डूब जायेंगे बड़े शौक़ से हम भी
रंग और रूप का सागर तो मिले

किसने माँगा है रेशम का लिबास
लाज ढकने को  चादर तो मिले

हम तलाश आये हैं कितने पर्वत
कहीं ईमान का पत्थर तो मिले 

मेरा आशियाँ जलाने को


तू परेशान न हो मेरी इन खुशियों से रक़ीब
दोस्त कुछ कम तो नहीं आशियाँ जलाने को

उन्हें आता है बना रखना शराफत का भरम
खाक़ जब हो गया घर आये हैं बुझाने को

कोई गर और जो करता तो शिकायत करते  
दर्द अपनों ने दिया क्या कहें ज़माने को

जानकर तुमसे बहुत दूर चले आये हम
क्या करें यादों का आतीं हैं जी जलाने को 

Sunday, 11 November 2012

यूँ ही होता जाता है

दीवान लिखा होगा तूने , कोई पढ़कर हमें सुनाता है
जिसके हिस्से में जो भी है , अपना क़िरदार निभाता है

लगता है ऐसा होता है , क्या सच में ऐसा होता है
या हम सब सोती रूहें है , कोई सपना हमें दिखाता है

तक़दीर का रोना रोते हैं जाने कब से ये अहले जहाँ
क्या सब कुछ पहले से तय है , या यूँ ही होता जाता है

हर पल इस फ़ानी दुनिया के हालात बदलते रहते हैं
बस एक दस्तूर नहीं बदला जो आता है वो जाता है

मेहेरबां बन कर

जो हो सके तो बस आओ दिलो जाँ बनकर
न करो कुछ भी मेहेरबां बन कर

बिना लिबास हूँ दाग़ों को देखती है ज़मीन
ढक दो ज़ख्मों को आसमाँ बन कर

कुछ कहेंगे तो फिर कहेंगे लोग बढ़ बढ़ कर
तमाम उम्र जिए है बेजुबाँ बन कर

मैं थक चुका ज़माने में फ़रिश्तों से मिल कर
मेरे घर आओ कभी इन्सां बनकर

Saturday, 10 November 2012

यहाँ हर आदमी सुलगता है

दोनों हमजात हैं इंसान हैं हम
तू मेरा कुछ न कुछ तो लगता है

ये बात और है धुंआ न उठे
यहाँ हर आदमी सुलगता है

है कई लोग जो चैन से सो लेते हैं
और कोई सारी उम्र जगता है

जिसमें ताकत है साफ़ दामन है
जो है कमज़ोर दागदार लगता है

Friday, 9 November 2012

अब जा चुकी बरसात

वो आते हैं मिलते हैं मगर बेरुखी के साथ
करते हैं इंतज़ार जिनका सारी सारी रात

हमको तो राहे इश्क़ में बस सिसकियाँ मिलीं
होता है इस तरह क्या हर एक आदमी के साथ

एक अश्कों का दरिया है ये मेरी ज़िंदगी
मुझसे न सही आँख से करते तो मुलाक़ात

कह दो ये गुंचों से न निकलें ज़मीन से
ये काँटों का मौसम है अब जा चुकी बरसात

Thursday, 8 November 2012

निगाह बार बार मिलती है

नहीं मिलती है  किसी से राहत     
निगाह बार बार मिलती है

नहीं हासिल है ज़ख्म को मरहम 
तसल्ली बेशुमार मिलती है

धूप निकली है ज़माने में हमें
रोशनी भी उधार मिलती है

उठती मौजों में क्या करें हम भी
ज़िंदगी दरिया पार मिलती है

Wednesday, 7 November 2012

वारदात बाक़ी है

कहो सहर से कि रात बाकी है
तुझसे कहनी थी बात बाकी है

चंद लोगों से ही मिला हूँ मैं
अभी तो क़ायनात  बाकी है

तू रूबरू है तब क्यूँ लगता है
कि तुझसे मुलाक़ात बाकी है
  
लुटे हैं फिर भी सोचते हैं लोग
कोई नयी वारदात बाक़ी है 

Monday, 5 November 2012

विस्मित हो ,मत रो मन

जीवन से जीवन जन्मा है
इसी तरह बच पाया जीवन
मैं भीगा हूँ तुम भीगोगे
जब जब भी बरसेगा सावन

मेरा मेरा क्यूँ करता है
करना है तो राम राम कर
विष पी कर हंस शिव बन
अपना ले सबसे अपनापन

मैं जाऊँगा तुम आओगे
तुम जाओगे वो आएगा
काल चक्र की सुन  धुन 
विस्मित हो ,मत रो मन