Friday 30 November 2012

कोई ख्वाब न देख

मुझसे  मिलना है  मेरी रूह से मिल
मेरे बदन में लिपटा हुआ लिबास न देख

ठीक से जान ले दरिया ये कितना गहरा है
आती जाती हुई लहरों का हिसाब न देख

रक्स करती हुई परियों की  कहानी तो नहीं
 ज़िंदगी  एक हकीकत है  कोई ख्वाब न देख

शर्म से दोहरा हुआ जाता है तेरा महबूब
भरी महफ़िल में  यूँ उसे  बेहिसाब न देख  

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