Sunday 11 November 2012

मेहेरबां बन कर

जो हो सके तो बस आओ दिलो जाँ बनकर
न करो कुछ भी मेहेरबां बन कर

बिना लिबास हूँ दाग़ों को देखती है ज़मीन
ढक दो ज़ख्मों को आसमाँ बन कर

कुछ कहेंगे तो फिर कहेंगे लोग बढ़ बढ़ कर
तमाम उम्र जिए है बेजुबाँ बन कर

मैं थक चुका ज़माने में फ़रिश्तों से मिल कर
मेरे घर आओ कभी इन्सां बनकर

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