Friday 25 November 2011

ये उम्र बड़ी है

इन हवाओं को गीत गाने दो,
खिली है धूप मुस्कराने दो
रोने के लिए हमको सारी रात पड़ी है

लफ़्ज़ कल का बस एक धोखा है
जो भी होता है आज होता है
जीना जो अगर आये तो ये उम्र बड़ी है

मेरे ये पैर क्यूँ नहीं रुकते
टूटे शीशे भी क्यूँ नहीं चुभते
लगता है जैसे अब तेरे आने की घड़ी है

रूह तरसेगी  अभी  मत जाओ
आँख बरसेगी कुछ ठहर जाओ
क्यूँ  तुम को लौट कर के  जाने की पडी है

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