Tuesday 22 November 2011

नयनों का खारा जल

पाहन बैठे हैं आस लगा , पूछा करते हैं पल प्रति पल
कब अधर हमारे भीगेंगे , नदिया कहती जाती 'कल कल'

क्या करें शिकायत हम तुमसे आवारा सर्द हवाओं की
हमने तो हाथ बढ़ाये थे , ले गयीं छीन तेरा आँचल
 
है शिल्पकार अन्याय तेरा , जीवन में गहरे घाव दिए
फिर उनकी पीड़ा सहने को , क्यूँ हृदय दिया इतना कोमल

मैं रूप तुम्हारा क्यों देखूं , मैं अपनी प्यास बुझा लूँगा
मेरे प्याले में भर देना अपने नयनों का खारा जल

कल ये होगा कल वो होगा , यदि ये न हुआ तो क्या होगा
मत इतना गणित लगाओ तुम, कुल जीवन है केवल दो पल
 

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