Wednesday 28 September 2011

साँसों का क़र्ज़ था

बाहोश मैं रोया था मेरी बेख़ुदी न थी
नज़रों को झुका लेना मेरी बंदगी न थी

गिरना तेरी गलियों में पहले से ही तय था
उल्फत का रास्ता था जहाँ रोशनी न थी

साँसों का क़र्ज़ था सो चुकाते चले गए
कहने को हम ज़िंदा थे मगर ज़िंदगी न थी

एक चेहरा ढूंढते थे खुली खिडकियों में हम
हमको तेरी तलाश थी आवारगी न थी

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