Saturday 17 September 2011

नशा माज़ी का है

यादों की झील में आये हैं शराबी झोंके
रक्स करने लगा है अक्स तेरा पानी में

कुछ नए रंग उभर आते हैं मेरे चेहरे पे
ज़िक्र आता है तेरा जब मेरी कहानी में

मुड के   पीछे मैं जो देखूं तो ख़्वाब लगते हैं
जितने रंगीन मनाज़िर थे उस जवानी में

तेरी मखमूर निगाहों के हम हैं मश्कूर
नशा माज़ी का
है हलका सा जिंदगानी में
 

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