Sunday 4 September 2011

आज तेरे रूबरू है

लिख जाती है शामें तेरा नाम दिल पर
हर सुबहा तेरे नाम ही से  होती शुरू है

जो दिखता है ज़ेहन की इन खिडकियों से
ज़र्रे ज़र्रे में दुनियां के बस तू ही तू है

क्यूँ डरता है तू  काँटों की चुभन से
जिसे बोया था तूने आज तेरे रूबरू है

मिलेगी ख़ाक में एक दिन ये दौलत
बस तेरे बाद रह जायेगी तेरी आबरू
है
 
 

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