Sunday, 29 September 2013

दिया हूँ बुझता हुआ

दिया हूँ बुझता हुआ मुझपे भरोसा न करो
चलो बुरा हूँ मैं पर इतना भी कोसा न करो

यहाँ से जो भी गया एक ही कपडे में गया
ये मेरा है वो मेरा है खामखाँ सोचा न करो

हर एक चेहरे के पीछे एक नया चेहरा है
बिना पहचान दिलो जान परोसा न करो

तुमको चाहा है बस इतनी खता है मेरी
मेरी नज़र को भरे शहर में रुसवा न करो

Thursday, 26 September 2013

नफ़रत सी हो चली है




जुड़ गया है इसका रिश्ता क़त्ले आम से
नफ़रत सी हो चली है मज़हब के नाम से

खून बहाने की तुम्हे किसने दी इजाज़त 
पूछेंगे हम अल्लाह से पूछेंगे राम से

ना जाने कहाँ खो गयीं , गीता औ कुरान
अहले जहां को  इश्क हुआ  इंतक़ाम  से

चुपचाप लौट जाऊँगा  मयखाने से  प्यासा
बस  एक घूँट दे दे  मोहब्बत के जाम से 

Sunday, 22 September 2013

दीवार में बिछी है बारूद सियासत की

  दीवार में बिछी है  बारूद सियासत की
  जलाई आग  तो उड़ जाओगे

  थाम कर रखना मोहब्बत का दामन  
  उसको छोड़ोगे  बिछड़ जाओगे

 सियाही इतनी जमी है तुम्हारे चेहरे पे
 देखोगे शर्म से गड़  जाओगे 

थोडा तो जान लो अफवाहों का सच
यूँ ही हर बात पे लड़ जाओगे  ?

Saturday, 7 September 2013

आख़िरी पहर का ख्वाब


मैं हूँ एक  आख़िरी पहर का ख्वाब
पूरा होने तलक रात ढल जायेगी

न  रोक तू  मेरे  अश्कों का सैलाब
थोडा रोने से हालत  संभल जायेगी

कुछ तो  दे दे  मेरे खतों का जवाब
कसक मेरे दिल की निकल जायगी

 तेरा चेहरा उगते सूरज का शबाब