Saturday 7 September 2013

आख़िरी पहर का ख्वाब


मैं हूँ एक  आख़िरी पहर का ख्वाब
पूरा होने तलक रात ढल जायेगी

न  रोक तू  मेरे  अश्कों का सैलाब
थोडा रोने से हालत  संभल जायेगी

कुछ तो  दे दे  मेरे खतों का जवाब
कसक मेरे दिल की निकल जायगी

 तेरा चेहरा उगते सूरज का शबाब
 

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