Monday 23 December 2013

मैं विश्वविद्यालय को वर्गों में नहीं आंकता

सभी विद्यार्थियों , अध्यापक तथा समाज के और लोगों के विचार सुनने के बाद मैं अपना आकलन बताना चाहूंगा । मैं ग़लत भी हो सकता हूँ ।
" मैं विश्वविद्यालय को वर्गों में नहीं आंकता । विद्यार्थी अच्छे भी होते हैं , बुरे भी होते हैं ,अध्यापक अच्छे भी होते हैं , बुरे भी होते हैं। जे के इंस्टिट्यूट में जो हुआ वह बहुत दुखद है । विश्वविद्यालय प्रशासन ने विद्यार्थियों के प्रदर्शन के बावजूद इसकी गभीरता को नहीं समझा या समझ कर नहीं समझा । उपकुलपति महोदय , जिन्होंने अपनी वीर गाथाएं सुना सुना कर हमारे कान पका दिए , अध्यापक और विद्यार्थी को अछूत समझते हैं । अध्यापक संघ की मीटिंग में आना उन्हें गवारा नहीं । दस विद्यार्थियों से वार्तालाप नहीं कर सकते हैं । एक अध्यापक जो विज्ञान के नाम पर कोढ़ है पर जिसका यू जी सी और डी एस टी में ज़ोर है उसकी परिस्थिति सम्भालने के लिए वे बिना आमंत्रण के भी विभाग में आ सकते हैं । ईश्वर जाने इस विश्वविद्यालय का क्या होगा और यह वक्तव्य देने के बाद मेरे साथ क्या होगा ,नहीं मालूम ।

दुष्यंत की पंक्तियाँ याद आतीं हैं
" हम बहुत कुछ सोचतें हैं पर कभी कहते नहीं"

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