Sunday 22 December 2013

विकलांग केंद्र

मैं सन १९७१ से डा अमर नाथ झा छात्रावास के सांस्कृतिक समारोह के लिए कव्वालियों के लिए संगीत रचना करता आ रहा हूँ । मुझे यह विधा इस लिए पसंद है कि इसमें ग़ज़ल , नज़्म , कविता और लोकगीत किसी का भी सहारा ले कर आप अपनी बात कह सकते हैं । कई वर्ष पहले उदीशा की कव्वाली प्रतियोगिता में हम लोगों को पारितोषिक धन राशि के रूप में मिला , संभवतया ५०० रु । १५ वर्ष पहले यह धन राशि काफी होती थी । वह उदीशा विकलांगो को समर्पित की गयी थी । बात यह उठी कि इस पैसे क्या किया जाय , किसी होटल में चल के खाना खाया जाय... । पर मेरे कहने पर कि यह धन राशि किसी अच्छे कार्य में लगाईं जाय , हम लोग भारद्वाज आश्रम पर गए और यह पैसा वहाँ के विकलांग केंद्र के संचालक महोदय को दिया । कोई बंगाली बुज़ुर्ग थे , मुझे नाम याद नहीं आ रहा है । उन्होंने सभी विकलांग बच्चों को एकत्रित किया और "हम होंगे कामयाब " गाना गवाया । मेरे आंसू रोके नहीं रुक रहे थे और सोच रहा था कि ईश्वर तू मुझे भी ऐसा ही बना देता तो मैं तेरा क्या बिगाड़ लेता ।

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