Saturday 6 October 2012

इतनी सज़ा काफ़ी है

शबनमी बूंदों में आंसू मिला कर पी लिए मैंने
आज दिन भर के लिए इतना नशा काफ़ी है

तेरी यादों में इतने सख्त लमहे जी लिए मैंने

बकाया उम्र के लिए बस इतनी सज़ा काफ़ी है

सुलग रहा है तो वो कल ख़ाक भी हो जाएगा
दिल  से जितना भी निकलता है धुआं काफी है  


दहशत का दौर है , रात है दरवाज़े बंद रहने दे

इन दरीचों से जितनी  आती है हवा काफी
है

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